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चि॒त्रा वा॒ येषु॒ दीधि॑तिरा॒सन्नु॒क्था पान्ति॒ ये। स्ती॒र्णं ब॒र्हिः स्व॑र्णरे॒ श्रवां॑सि दधिरे॒ परि॑ ॥४॥

English Transliteration

citrā vā yeṣu dīdhitir āsann ukthā pānti ye | stīrṇam barhiḥ svarṇare śravāṁsi dadhire pari ||

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Pad Path

चि॒त्रा। वा। येषु॑। दीधि॑तिः। आ॒सन्। उ॒क्था। पान्ति॑। ये। स्ती॒र्णम्। ब॒र्हिः। स्वः॑ऽनरे। श्रवां॑सि। द॒धि॒रे॒। परि॑ ॥४॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:18» Mantra:4 | Ashtak:4» Adhyay:1» Varga:10» Mantra:4 | Mandal:5» Anuvak:2» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (येषु) जिन अतिथियों में (चित्रा) विचित्र (दीधितिः) प्रकाशमान विद्या है और (आसन्) आसन वा मुख में (उक्था) प्रशंसा करने योग्य कर्म हैं और (ये, वा) अथवा जो (स्तीर्णम्) आच्छादित अर्थात् अन्तःकरण में व्याप्त (बर्हिः) अन्तरिक्ष के सदृश विज्ञान की (स्वर्णरे) सुख से युक्त मनुष्य में (पान्ति) रक्षा करते हैं और (श्रवांसि) अन्नादिकों को (परि) सब ओर से (दधिरे) धारण करें, वे ही श्रेष्ठ अतिथि होते हैं ॥४॥
Connotation: - जो विद्या के उत्तम गुणों से पूर्ण, सब के हित चाहनेवाले, पुरुषार्थी अर्थात् उत्साही और पक्षपात से रहित अतिथिजन उपदेश से सब की रक्षा करते हैं, वे संसार के कल्याण करनेवाले होते हैं ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! येषु चित्रा दीधितिरस्त्यासन्नुक्था सन्ति ये वा स्तीर्णं बर्हिरिव स्वर्णरे पान्ति श्रवांसि परि दधिरे त एवोत्तमा अतिथयः सन्ति ॥४॥

Word-Meaning: - (चित्रा) (वा) (येषु) अतिथिषु (दीधितिः) प्रकाशमाना विद्या (आसन्) आसन आस्ये वा (उक्था) प्रशंसनीयानि कर्माणि (पान्ति) रक्षन्ति (ये) (स्तीर्णम्) आच्छादितम् (बर्हिः) अन्तरिक्षमिव विज्ञानम् (स्वर्णरे) स्वः सुखेन युक्ते नरे (श्रवांसि) अन्नादीनि (दधिरे) दध्युः (परि) सर्वतः ॥४॥
Connotation: - ये विद्याशुभगुणपूर्णाः सर्वेषां हितं प्रेप्सवः पुरुषार्थिनः पक्षपातरहिता अतिथय उपदेशेन सर्वान् रक्षन्ति ते जगत्कल्याणकरा भवन्ति ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे विद्याशुभगुणांनी पूर्ण, सर्वांचे हितेच्छु, पुरुषार्थी व भेदभावरहित अतिथी उपदेश करून सर्वांचे रक्षण करतात, ते जगाचे कल्याणकर्ते असतात. ॥ ४ ॥