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अस्य॒ हि स्वय॑शस्तर आ॒सा वि॑धर्म॒न्मन्य॑से। तं नाकं॑ चि॒त्रशो॑चिषं म॒न्द्रं प॒रो म॑नी॒षया॑ ॥२॥

English Transliteration

asya hi svayaśastara āsā vidharman manyase | taṁ nākaṁ citraśociṣam mandram paro manīṣayā ||

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Pad Path

अस्य॑। हि। स्वय॑शःतरः। आ॒सा। वि॒ऽध॒र्म॒न्। मन्य॑से। तम्। नाक॑म्। चि॒त्रऽशो॑चिषम्। म॒न्द्रम्। प॒रः। म॒नी॒षया॑ ॥२॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:17» Mantra:2 | Ashtak:4» Adhyay:1» Varga:9» Mantra:2 | Mandal:5» Anuvak:2» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब विद्वद्विषय को मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (विधर्मन्) विशेष धर्म के अनुगामी ! जो (हि) निश्चय (अस्य) इसके सम्बन्ध में (स्वयशस्तरः) अत्यन्त अपना यश जिसका ऐसा पुरुष (आसा) मुख वा आसन से वर्त्तमान है और (परः) श्रेष्ठ हुए (मनीषया) बुद्धि से (तम्) उस (मन्द्रम्) आनन्द देनेवाले और (चित्रशोचिषम्) अद्भुत प्रकाशयुक्त (नाकम्) दुःख से रहित को आप (मन्यसे) जानते हो, उसका मैं आदर करता हूँ ॥२॥
Connotation: - हे विद्वन् ! आप सदा ही धर्म्मयुक्त यश को बढ़ानेवाले कर्म्म को करें, जिससे अत्यन्त सुख को प्राप्त होवें ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ विद्वद्विषयमाह ॥

Anvay:

हे विधर्मन् ! यो ह्यस्य स्वयशस्तर आसा वर्त्तते परः सन्मनीषया तं मन्द्रं चित्रशोचिषं नाकं त्वं मन्यसे तमहं मन्ये ॥२॥

Word-Meaning: - (अस्य) (हि) (स्वयशस्तरः) अतिशयेन स्वकीयं यशो यस्य सः (आसा) मुखेनासनेन वा (विधर्मन्) विशेषधर्मानुचारिन् (मन्यसे) (तम्) (नाकम्) अविद्यमानदुःखम् (चित्रशोचिषम्) अद्भुतप्रकाशम् (मन्द्रम्) आनन्दप्रदम् (परः) (मनीषया) प्रज्ञया ॥२॥
Connotation: - हे विद्वन् ! भवान् सदैव धर्म्यं कीर्त्तिकरं कर्म्म कुर्य्याद्येन परं सुखमाप्नुयात् ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे विद्वाना ! तू सदैव धर्मयुक्त कीर्ती वाढविणारे कर्म कर. त्यामुळे अत्यंत सुख प्राप्त होईल. ॥ २ ॥