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बृ॒हद्वयो॒ हि भा॒नवेऽर्चा॑ दे॒वाया॒ग्नये॑। यं मि॒त्रं न प्रश॑स्तिभि॒र्मर्ता॑सो दधि॒रे पु॒रः ॥१॥

English Transliteration

bṛhad vayo hi bhānave rcā devāyāgnaye | yam mitraṁ na praśastibhir martāso dadhire puraḥ ||

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Pad Path

बृ॒हत्। वयः॑। हि। भा॒नवे॑। अर्च॑। दे॒वाय॑। अ॒ग्नये॑। यम्। मि॒त्रम्। न। प्रश॑स्तिऽभिः। मर्ता॑सः। द॒धि॒रे। पु॒रः ॥१॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:16» Mantra:1 | Ashtak:4» Adhyay:1» Varga:8» Mantra:1 | Mandal:5» Anuvak:2» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब पाँच ऋचावाले सोलहवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में बिजुली के विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वन् ! (मर्त्तासः) मनुष्य (प्रशस्तिभिः) प्रशंसाओं से (यम्) जिसको (मित्रम्) मित्र के (न) समान (पुरः) प्रथम से (दधिरे) धारण करते हैं, उसको (भानवे) प्रकाश के लिये और (देवाय) श्रेष्ठ गुणवाले (अग्नये) बिजुली आदि के लिये (बृहत्) बड़ा (वयः) प्रदीप्त करनेवाला तेज जैसे हो, वैसे (हि) ही (अर्चा) पूजिये, आदर करिये ॥१॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जैसे मित्र, मित्र को धारण करके सुख की वृद्धि को प्राप्त होता है, वैसे ही अग्नि आदि पदार्थों की विद्या को प्राप्त होकर विद्वान् जन आनन्द से वृद्धि को प्राप्त होते हैं ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ विद्युद्विषयमाह ॥

Anvay:

हे विद्वन् ! मर्त्तासः प्रशस्तिभिर्यं मित्रं न पुरो दधिरे तं भानवे देवायाग्नये बृहद्वयो यथा स्यात् तथा ह्यर्चा ॥१॥

Word-Meaning: - (बृहत्) महत् (वयः) प्रदीपकं तेजः (हि) (भानवे) प्रकाशाय (अर्चा) पूजय। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (देवाय) दिव्यगुणाय (अग्नये) विद्युदाद्याय (यम्) (मित्रम्) सखायम् (न) इव (प्रशस्तिभिः) प्रशंसाभिः (मर्त्तासः) मनुष्याः (दधिरे) दधति (पुरः) पुरस्तात् ॥१॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । यथा सखा सखायं धृत्वा सुखमेधते तथैवाग्न्यादिविद्यां प्राप्य विद्वांस आनन्देन वर्धन्ते ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात विद्युत, युद्ध व राज्याच्या ऐश्वर्याचे वर्धन यांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसा मित्र मित्राच्या संगतीने सुख वाढवितो तसेच अग्नी इत्यादी पदार्थांची विद्या प्राप्त करून विद्वान लोक आनंद वाढवितात. ॥ १ ॥