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कया॑ नो अग्न ऋ॒तय॑न्नृ॒तेन॒ भुवो॒ नवे॑दा उ॒चथ॑स्य॒ नव्यः॑। वेदा॑ मे दे॒व ऋ॑तु॒पा ऋ॑तू॒नां नाहं पतिं॑ सनि॒तुर॒स्य रा॒यः ॥३॥

English Transliteration

kayā no agna ṛtayann ṛtena bhuvo navedā ucathasya navyaḥ | vedā me deva ṛtupā ṛtūnāṁ nāham patiṁ sanitur asya rāyaḥ ||

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Pad Path

कया॑। नः॒। अ॒ग्ने॒। ऋ॒तय॑न्। ऋ॒तेन॑। भुवः॑। नवे॑दाः। उ॒चथ॑स्य। नव्यः॑। वेद॑। मे॒। दे॒वः। ऋ॒तु॒ऽपाः। ऋ॒तू॒नाम्। न। अ॒हम्। पति॑म्। स॒नि॒तुः। अ॒स्य। रा॒यः ॥३॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:12» Mantra:3 | Ashtak:4» Adhyay:1» Varga:4» Mantra:3 | Mandal:5» Anuvak:1» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर अग्निपदवाच्य विद्वद्विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (अग्ने) विद्वन् ! आप (कया) किस विद्या वा युक्ति से (नः) हम लोगों को जनावें (ऋतेन) सत्य से (ऋतयन्) सत्य का आचरण करता हुआ (भुवः) पृथिवी का (नवेदाः) नहीं प्राप्त होनेवाला (उचथस्य) उचित का सम्बन्धी (नव्यः) नवीनों में श्रेष्ठ (ऋतुपाः) ऋतुओं का पालन करनेवाला पृथ्वीसम्बन्धी (देवः) विद्वान् (अहम्) मैं (ऋतूनाम्) वसन्त आदि ऋतुओं और (अस्य) इस (सनितुः) विभाग करनेवाले (रायः) धन के (पतिम्) स्वामी का (न) नहीं नाश कराता हूँ, वैसे आप (मे) मुझ को (वेदा) जानिये और मुझ को नष्ट मत करिये ॥३॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! सत्य के आचरण से ही पृथ्वी का राज्य प्राप्त होता है और पृथ्वी के राज्य और लक्ष्मी से सब को सुख होता है ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनरग्निपदवाच्यविद्वद्विषयमाह ॥

Anvay:

हे अग्ने ! त्वं कया युक्त्या नोऽस्मान् विज्ञापयेः ऋतेनर्त्तयन् सन् भुवो नवेदा उचथस्य नव्य ऋतुपा भुवो देवोऽहमृतूनामस्य सनितू रायः पतिं न नाशयामि तथा मे वेदा मा नाशय ॥३॥

Word-Meaning: - (कया) विद्यया युक्त्या वा (नः) अस्मान् (अग्ने) विद्वन् (ऋतयन्) सत्यमाचरन् (ऋतेन) सत्येन (भुवः) पृथिव्याः (नवेदाः) यो न विन्दति सः (उचथस्य) उचितस्य (नव्यः) नवेषु साधुः (वेदा) जानीहि (मे) माम् (देवः) विद्वान् (ऋतुपाः) य ऋतून् पाति (ऋतूनाम्) वसन्तादीनाम् (न) निषेधे (अहम्) (पतिम्) (सनितुः) विभाजकस्य (अस्य) (रायः) धनस्य ॥३॥
Connotation: - हे मनुष्याः ! सत्याचरणेनैव भूराज्यं प्राप्यते पृथिवीराज्येन श्रिया च सर्वेषां सुखं जायते ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो ! सत्याचरणानेच पृथ्वीचे राज्य प्राप्त होते व पृथ्वीचे राज्य आणि लक्ष्मी याद्वारे सर्वांना सुख मिळते. ॥ ३ ॥