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अबो॑ध्य॒ग्निः स॒मिधा॒ जना॑नां॒ प्रति॑ धे॒नुमि॑वाय॒तीमु॒षास॑म्। य॒ह्वाइ॑व॒ प्र व॒यामु॒ज्जिहा॑नाः॒ प्र भा॒नवः॑ सिस्रते॒ नाक॒मच्छ॑ ॥१॥

English Transliteration

abodhy agniḥ samidhā janānām prati dhenum ivāyatīm uṣāsam | yahvā iva pra vayām ujjihānāḥ pra bhānavaḥ sisrate nākam accha ||

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Pad Path

अबो॑धि। अ॒ग्निः। स॒म्ऽइधा॑। जना॑नाम्। प्रति॑। धे॒नुम्ऽइ॑व। आ॒ऽय॒तीम्। उ॒षास॑म्। य॒ह्वाःऽइ॑व। प्र। व॒याम्। उ॒त्ऽजिहा॑नाः। प्र। भा॒नवः॑। सि॒स्र॒ते॒। नाक॑म्। अच्छ॑ ॥१॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:1» Mantra:1 | Ashtak:3» Adhyay:8» Varga:12» Mantra:1 | Mandal:5» Anuvak:1» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब बारह ऋचावाले प्रथम सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में उपदेश देने योग्य और उपदेश देनेवाले के गुणों को कहते हैं ॥१॥

Word-Meaning: - हे विद्वन्! जैसे (समिधा) ईन्धन और घृत आदि से (अग्निः) अग्नि (अबोधि) जाना जाता अर्थात् प्रज्वलित किया जाता है (भानवः) कान्तियें (जनानाम्) मनुष्यों की (आयतीम्) आती हुई (धेनुमिव) दुग्ध देनेवाली गौ के तुल्य (उषासम्) प्रातर्वेला के (प्रति) (प्र, सिस्रते) प्राप्त होती और (वयाम्) शाखा को (प्र, उज्जिहानाः) अच्छे प्रकार त्यागते हुए (यह्वा इव) बड़े वृक्षों के सदृश (नाकम्) दुःख से रहित अन्तरिक्ष को (अच्छ) उत्तम प्रकार प्राप्त होती है, वैसे आप हूजिये ॥१॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो अग्न्यादि पदार्थों की विद्या को ग्रहण कर कार्य्यों में अच्छे प्रकार युक्त करते हैं, वे दुःखरहित हुए वृक्षों के समान बढ़ते हैं ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथोपदेश्योपदेशकगुणानाह ॥

Anvay:

हे विद्वन्! यथा समिधाग्निरबोधि भानवो जनानामायतीं धेनुमिवोषासं प्रति प्र सिस्रते वयां प्रोज्जिहाना यह्वा इव नाकमच्छ सिस्रते तथा त्वं भव ॥१॥

Word-Meaning: - (अबोधि) बुध्यते (अग्निः) पावकः (समिधा) इन्धनैर्घृतादिना (जनानाम्) मनुष्याणाम् (प्रति) (धेनुमिव) दुग्धप्रदां गामिव (आयतीम्) आगच्छन्तीम् (उषासम्) उषसम्। अत्रान्येषामपीति दीर्घः। (यह्वाइव) महान्तो वृक्षा इव (प्र) (वयाम्) शाखाम् (उज्जिहानाः) त्यजन्तः (प्र) (भानवः) दीप्तयः (सिस्रते) सरन्ति गच्छन्ति (नाकम्) अविद्यमानदुःखमन्तरिक्षम् (अच्छ) सम्यक् ॥१॥
Connotation: - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। येऽग्न्यादिविद्यां गृहीत्वा कार्य्येषु प्रयुञ्जते दुःखविरहाः सन्तो वृक्षा इव वर्द्धन्ते ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात उपदेश ऐकणारे व उपदेश ऐकविणारे यांच्या गुणांचे वर्णन केल्याने या सूक्ताच्या अर्थाची या पूर्वीच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जे अग्नी इत्यादी पदार्थांची विद्या ग्रहण करून तिचा कार्यात उपयोग करतात ते दुःखरहित बनतात व त्यांची वृक्षाप्रमाणे वाढ होते. ॥ १ ॥