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स॒म्यक्स्र॑वन्ति स॒रितो॒ न धेना॑ अ॒न्तर्हृ॒दा मन॑सा पू॒यमा॑नाः। ए॒ते अ॑र्षन्त्यू॒र्मयो॑ घृ॒तस्य॑ मृ॒गाइ॑व क्षिप॒णोरीष॑माणाः ॥६॥

English Transliteration

samyak sravanti sarito na dhenā antar hṛdā manasā pūyamānāḥ | ete arṣanty ūrmayo ghṛtasya mṛgā iva kṣipaṇor īṣamāṇāḥ ||

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Pad Path

स॒म्यक्। स्र॒व॒न्ति॒। स॒रितः॑ न। धेनाः॑। अ॒न्तः। हृ॒दा। मन॑सा। पू॒यमा॑नाः। ए॒ते। अ॒र्ष॒न्ति॒। ऊ॒र्मयः॑। घृ॒तस्य॑। मृ॒गाःऽइ॑व। क्षि॒प॒णोः। ईष॑माणाः ॥६॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:58» Mantra:6 | Ashtak:3» Adhyay:8» Varga:11» Mantra:1 | Mandal:4» Anuvak:5» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उदकविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - जिन विद्वानों के (अन्तः, हृदा) अन्तर्विराजमान आत्मा और (मनसा) शुद्ध अन्तःकरण से (पूयमानाः) पवित्रता करती हुई (धेनाः) विद्यायुक्त वाणियाँ (सरितः) नदियों के (न) सदृश (सम्यक्) उत्तम प्रकार (स्रवन्ति) चलती हैं सो (एते) ये विद्वान् (घृतस्य) जल की (ऊर्मयः) लहरियों और (क्षिपणोः) प्रेरणा देनेवाले से (मृगाइव) हरिणों के सदृश (ईषमाणः) चलते हुए सब कीर्ति को (अर्षन्ति) प्राप्त होते हैं ॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो सत्य कहते हैं वे ही पवित्रात्मा होके जल के सदृश शान्त होते हुए मृगों के सदृश शीघ्र ही अपेक्षित सुख को प्राप्त होते हैं ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनरुदकविषयमाह ॥

Anvay:

येषां विदुषामन्तर्हृदा मनसा पूयमाना धेनाः सरितो न सम्यक् स्रवन्ति त एते घृतस्योर्मयः क्षिपणोर्मृगाइवेषमाणाः सर्वां कीर्त्तिमर्षन्ति ॥६॥

Word-Meaning: - (सम्यक्) (स्रवन्ति) चलन्ति (सरितः) नद्यः (न) इव (धेनाः) विद्यायुक्ता वाचः (अन्तः, हृदा) अन्तःस्थितेनात्मना (मनसा) शुद्धेनान्तःकरणेन (पूयमानाः) पवित्रतां कुर्वाणाः (एते) (अर्षन्ति) गच्छन्ति (ऊर्मयः) तरङ्गाः (घृतस्य) उदकस्य (मृगाइव) (क्षिपणोः) प्रेषकात् (ईषमाणाः) गच्छन्तः ॥६॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । ये सत्यं वदन्ति त एव पवित्रात्मानो भूत्वा जलवच्छान्ताः सन्तो मृगा इव सद्य इष्टं सुखं प्राप्नुवन्ति ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे (लोक) सत्य बोलतात ते पवित्र आत्मे असून जलाप्रमाणे शांत असतात व मृगाप्रमाणे तात्काळ सुख प्राप्त करतात. ॥ ६ ॥