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शु॒नं नः॒ फाला॒ वि कृ॑षन्तु॒ भूमिं॑ शु॒नं की॒नाशा॑ अ॒भि य॑न्तु वा॒हैः। शु॒नं प॒र्जन्यो॒ मधु॑ना॒ पयो॑भिः॒ शुना॑सीरा शु॒नम॒स्मासु॑ धत्तम् ॥८॥

English Transliteration

śunaṁ naḥ phālā vi kṛṣantu bhūmiṁ śunaṁ kīnāśā abhi yantu vāhaiḥ | śunam parjanyo madhunā payobhiḥ śunāsīrā śunam asmāsu dhattam ||

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Pad Path

शु॒नम्। नः॒। फालाः॑। वि। कृ॒ष॒न्तु॒। भूमि॑म्। शु॒नम्। की॒नाशाः॑। अ॒भि। य॒न्तु॒। वा॒हैः। शु॒नम्। प॒र्जन्यः॑। मधु॑ना। पयः॑ऽभिः। शुना॑सीरा। शु॒नम्। अ॒स्मासु॑। ध॒त्त॒म् ॥८॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:57» Mantra:8 | Ashtak:3» Adhyay:8» Varga:9» Mantra:8 | Mandal:4» Anuvak:5» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - जैसे (फालाः) लोहे से बनाई गई भूमि के खोदने के लिये वस्तुएँ (वाहैः) बैल आदिकों के द्वारा (नः) हम लोगों के लिये (भूमिम्) भूमि को (शुनम्) सुखपूर्वक (वि, कृषन्तु) खोदें (कीनाशाः) कृषिकर्म्म करनेवाले (शुनम्) सुख को (अभि, यन्तु) प्राप्त हों (पर्जन्यः) मेघ (मधुना) मधुर आदि गुण से (पयोभिः) और जलों से (शुनम्) सुख को वर्षावे, वैसे (शुनासीरा) अर्थात् सुख देनेवाले स्वामी और भृत्य कृषिकर्म करनेवाले तुम दोनों (अस्मासु) हम लोगों में (शुनम्) सुख को (धत्तम्) धारण करो ॥८॥
Connotation: - कृषिकर्म्म करनेवाले मनुष्यों को चाहिये कि उत्तम फाल आदि वस्तुओं को बनाय के हल आदि से भूमि को उत्तम करके अर्थात् गोड़ के उत्तम सुख को प्राप्त हों, वैसे ही अन्य राजा आदि के लिये सुख देवें ॥८॥ इस सूक्त में कृषिकर्म के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥८॥ यह सत्तावनवाँ सूक्त और नवम वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

यथा फाला वाहैर्नो भूमिं शुनं वि कृषन्तु कीनाशाः शुनमभि यन्तु पर्जन्यो मधुना पयोभिः शुनमभिवर्षतु तथा शुनासीरास्मासु शुनं धत्तम् ॥८॥

Word-Meaning: - (शुनम्) सुखम् (नः) अस्मभ्यम् (फालाः) अयोनिर्मिता भूमिविलेखनार्थाः (वि) (कृषन्तु) (भूमिम्) (शुनम्) सुखम् (कीनाशाः) कृषीवलाः (अभि) (यन्तु) (वाहैः) वृषभादिभिः (शुनम्) (पर्जन्यः) मेघः (मधुना) मधुरादिगुणेन (पयोभिः) उदकैः (शुनासीरा) सुखदस्वामिभृत्यौ कृषीवलौ (शुनम्) (अस्मासु) (धत्तम्) धरतम् ॥८॥
Connotation: - कृषीवला मनुष्या अत्युत्तमानि फालादीनि निर्माय हलादिना भूमिमुत्तमां निष्कृष्योत्तमं सुखं प्राप्नुवन्तु तथैवान्येभ्यो राजादिभ्यः सुखं प्रयच्छन्त्विति ॥८॥ अत्र कृषिक्रियावर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥८॥ इति सप्तपञ्चाशत्तमं सूक्तं नवमो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - शेतकऱ्यांनी उत्तम फाळ इत्यादी वस्तू तयार करून नांगरून भूमी सुपीक करावी व सुख प्राप्त करावे, तसे राजा इत्यादीनाही सुख द्यावे. ॥ ८ ॥