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नू रो॑दसी॒ अहि॑ना बु॒ध्न्ये॑न स्तुवी॒त दे॑वी॒ अप्ये॑भिरि॒ष्टैः। स॒मु॒द्रं न सं॒चर॑णे सनि॒ष्यवो॑ घ॒र्मस्व॑रसो न॒द्यो॒३॒॑ अप॑ व्रन् ॥६॥

English Transliteration

nū rodasī ahinā budhnyena stuvīta devī apyebhir iṣṭaiḥ | samudraṁ na saṁcaraṇe saniṣyavo gharmasvaraso nadyo apa vran ||

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Pad Path

नु। रो॒द॒सी॒ इति॑। अहि॑ना। बु॒ध्न्ये॑न। स्तु॒वी॒त। दे॒वी इति॑। अप्येभिः। इ॒ष्टैः। स॒मुद्रम्। न। स॒म्ऽचर॑णे। स॒नि॒ष्यवः॑। घर्मऽस्व॑रसः। न॒द्यः॑। अप॑। व्रन् ॥६॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:55» Mantra:6 | Ashtak:3» Adhyay:8» Varga:7» Mantra:1 | Mandal:4» Anuvak:5» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वन् ! (घर्मस्वरसः) यज्ञ में अपने रसवाले आप जैसे (इष्टैः) मिलने और प्राप्त होने योग्य (अप्येभिः) जल में उत्पन्न हुए पदार्थों के साथ (सनिष्यवः) विभाग करती हुई (नद्यः) नदियाँ (सञ्चरणे) सुन्दर गमन में (समुद्रम्) अन्तरिक्ष के (न) तुल्य (अप, व्रन्) ढाँपती हैं, वैसे (बुध्न्येन) अन्तरिक्ष में हुए (अहिना) मेघ के सहित (देवी) प्रकाशमान (रोदसी) अन्तरिक्ष और पृथिवी की (नू) शीघ्र (स्तुवीत) प्रशंसा करें ॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । हे मनुष्यो ! जैसे मेघों के जलों से पूर्ण नदियाँ आवरणों को काट कर अन्तरिक्ष में जलों को प्राप्त होती हैं, वैसे ही आप लोग विद्या की दीप्ति को प्राप्त होकर सब विद्याओं की प्रशंसा करो ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे विद्वन् ! घर्मस्वरसो भवान् यथेष्टैरप्येभिस्सह सनिष्यवो नद्यः सञ्चरणे समुद्रं नापव्रँस्तथा बुध्न्येनाहिना सहिते देवी रोदसी नू स्तुवीत ॥६॥

Word-Meaning: - (नू) सद्यः। अत्र ऋचि तुनुघेति दीर्घः। (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (अहिना) मेघेन (बुध्न्येन) अन्तरिक्षे भवेन (स्तुवीत) प्रशंसेत् (देवी) देदीप्यमाने (अप्येभिः) अप्सु भवैः (इष्टैः) सङ्गन्तुं प्राप्तुमर्हैः (समुद्रम्) अन्तरिक्षम् (न) इव (सञ्चरणे) सम्यग्गमने (सनिष्यवः) विभागं करिष्यमाणाः (घर्मस्वरसः) घर्मे यज्ञे स्वकीयो रसो यस्य सः (नद्यः) सरितः (अप) (व्रन्) अपवृण्वन्ति ॥६॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । हे मनुष्या ! यथा मेघजलैः पूर्णा नद्य आवरणानि छित्त्वाऽन्तरिक्षेऽपो गच्छन्ति तथैव यूयं विद्याकाशं गत्वा सर्वा विद्याः प्रशंसत ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जशा मेघांच्या जलांनी पूर्ण भरलेल्या नद्या आवरण हटवून अंतरिक्षातील जल प्राप्त करतात तसे तुम्ही ही विद्या प्राप्त करून सर्व विद्येची प्रशंसा करा. ॥ ६ ॥