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व्य॑र्य॒मा वरु॑णश्चेति॒ पन्था॑मि॒षस्पतिः॑ सुवि॒तं गा॒तुम॒ग्निः। इन्द्रा॑विष्णू नृ॒वदु॒ षु स्तवा॑ना॒ शर्म॑ नो यन्त॒मम॑व॒द्वरू॑थम् ॥४॥

English Transliteration

vy aryamā varuṇaś ceti panthām iṣas patiḥ suvitaṁ gātum agniḥ | indrāviṣṇū nṛvad u ṣu stavānā śarma no yantam amavad varūtham ||

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Pad Path

वि। अ॒र्य॒मा। वरु॑णः। चे॒ति॒। पन्था॑म्। इ॒षः। पतिः॑। सु॒वि॒तम्। गा॒तुम्। अ॒ग्निः। इन्द्रा॑विष्णू इति॑। नृ॒ऽवत्। ऊ॒म् इति॑। सु। स्तवा॑ना। शर्म॑। नः। य॒न्तम्। अम॑ऽवत्। वरू॑थम् ॥४॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:55» Mantra:4 | Ashtak:3» Adhyay:8» Varga:6» Mantra:4 | Mandal:4» Anuvak:5» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वद्विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (अर्यमा) न्यायकर्त्ता और (वरुणः) श्रेष्ठ पुरुष (पन्थाम्) धर्मसम्बन्धी मार्ग को (वि, चेति) विशेष कर जानता है (गातुम्) पृथिवी को (अग्निः) अग्नि जैसे वैसे वर्त्तमान (इषः) अन्न आदि का (पतिः) स्वामी (सुवितम्) उत्तम प्रकार उत्पन्न किये गये को विशेषकर जानता है। और हे अध्यापकोपदेशको आप दोनों (इन्द्राविष्णू) बिजुली और वायु के सदृश (स्तवाना) सत्य की प्रशंसा करने वालो ! (नृवत्) प्रधान पुरुष के सदृश (उ) और (नः) हम लोगों के (अमवत्) प्रशस्तरूप से युक्त (शर्म) सुख और (वरूथम्) गृह को (सु, यन्तम्) अच्छे प्रकार प्राप्त होओ ॥४॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जैसे न्यायकारी विद्वान् लोग अधर्म्मसम्बन्धी मार्ग का त्याग करके धर्मसम्बन्धी मार्ग में चलते हैं, वैसे आप लोग भी चलें ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वद्विषयमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! योऽर्यमा वरुणश्च पन्थां वि चेति गातुमग्निरिवेषस्पतिः सुवितं वि चेति। हे अध्यापकोपदेशकौ युवामिन्द्राविष्णू इव स्तवाना ! नृवदु नोऽमवच्छर्म वरूथं सु यन्तम् ॥४॥

Word-Meaning: - (वि) (अर्यमा) न्यायकर्त्ता (वरुणः) श्रेष्ठः (चेति) विजानाति (पन्थाम्) धर्म्ममार्गम् (इषः) अन्नादेः (पतिः) स्वामी (सुवितम्) सुष्ठूत्पादितम् (गातुम्) पृथिवीम् (अग्निः) अग्निरिव वर्त्तमानः (इन्द्राविष्णू) विद्युद्वायू (नृवत्) नायकवत् (उ) (सु) (स्तवाना) सत्यप्रशंसकौ (शर्म) सुखम् (नः) अस्माकम् (यन्तम्) प्राप्नुतम् (अमवत्) प्रशस्तरूपयुक्तम्। (वरूथम्) गृहम् ॥४॥
Connotation: - हे मनुष्या ! यथा न्यायशीला विद्वांसोऽधर्म्यमार्गं विहाय धर्म्ये गच्छन्ति तथा यूयमपि गच्छत ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो! जसे न्यायी विद्वान लोक अधर्माच्या मार्गाचा त्याग करतात व धर्ममार्गाने जातात तसे तुम्हीही जावे. ॥ ४ ॥