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तत्सु नः॑ सवि॒ता भगो॒ वरु॑णो मि॒त्रो अ॑र्य॒मा। इन्द्रो॑ नो॒ राध॒सा ग॑मत् ॥१०॥

English Transliteration

tat su naḥ savitā bhago varuṇo mitro aryamā | indro no rādhasā gamat ||

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Pad Path

तत्। सु। नः॒। स॒वि॒ता। भगः॑। वरु॑णः। मि॒त्रः। अ॒र्य॒मा। इन्द्रः॑। नः॒। राध॑सा। आ। ग॒म॒त् ॥१०॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:55» Mantra:10 | Ashtak:3» Adhyay:8» Varga:7» Mantra:5 | Mandal:4» Anuvak:5» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वन् ! जैसे (सविता) सूर्य (भगः) सेवन करने योग्य पदार्थसमुदाय (वरुणः) उदानवायु (मित्रः) प्राणवायु (अर्यमा) न्यायकारी (तत्) उस (राधसा) धन से (नः) हम लोगों को (आ) सब प्रकार (गमत्) प्राप्त होता और (इन्द्रः) बिजुली (नः) हम लोगों को (सु) उत्तम प्रकार प्राप्त होती है, वैसे आप हूजिये ॥१०॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे अध्यापक और उपदेशक जनो ! जैसे नियम से सूर्य, वायु, प्राण आदि और बिजुली प्राप्त हैं, वैसे ही आप हम लोगों को निरन्तर प्राप्त हूजिये ॥१०॥ इस सूक्त में विद्वानों के गुणों का वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥१०॥ यह पचपनवाँ सूक्त और सप्तम वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे विद्वन् ! यथा सविता भगो वरुणो मित्रोऽर्यमा तद्राधसा न आ गमदिन्द्रो नः सु गमत्तथा त्वं भव ॥१०॥

Word-Meaning: - (तत्) तेन (सु) (नः) अस्मान् (सविता) सूर्य्यः (भगः) भजनीयः पदार्थसमुदायः (वरुणः) उदानः (मित्रः) प्राणः (अर्यमा) न्यायकारी (इन्द्रः) विद्युत् (नः) अस्मान् (राधसा) धनेन (आ) समन्तात् (गमत्) गच्छति ॥१०॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे अध्यापकोपदेशका ! यथा नियमेन सूर्य्यवायू प्राणादयो विद्युच्च प्राप्ताः सन्ति तथैवाऽस्मान् सततं प्राप्ता भवत ॥१०॥ अत्र विद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥१०॥ इति पञ्चपञ्चाशत्तमं सूक्तं सप्तमो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे अध्यापक व उपदेशकांनो! जसे सूर्य, वायू, प्राण व विद्युत नियमपूर्वक प्राप्त होतात, तसाच तुमच्याकडून आम्हाला लाभ होऊ द्या. ॥ १० ॥