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न प्र॒मिये॑ सवि॒तुर्दैव्य॑स्य॒ तद्यथा॒ विश्वं॒ भुव॑नं धारयि॒ष्यति॑। यत्पृ॑थि॒व्या वरि॑म॒न्ना स्व॑ङ्गु॒रिर्वर्ष्म॑न्दि॒वः सु॒वति॑ स॒त्यम॑स्य॒ तत् ॥४॥

English Transliteration

na pramiye savitur daivyasya tad yathā viśvam bhuvanaṁ dhārayiṣyati | yat pṛthivyā varimann ā svaṅgurir varṣman divaḥ suvati satyam asya tat ||

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Pad Path

न। प्र॒ऽमिये॑। स॒वि॒तुः। दैव्य॑स्य। तत्। यथा॑। विश्व॑म्। भुव॑नम्। धा॒र॒यि॒ष्यति॑। यत्। पृ॒थि॒व्याः। वरि॑मन्। आ। सु॒ऽअ॒ङ्गु॒रिः। वर्ष्म॑न्। दि॒वः। सु॒वति॑। स॒त्यम्। अ॒स्य॒। तत् ॥४॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:54» Mantra:4 | Ashtak:3» Adhyay:8» Varga:5» Mantra:4 | Mandal:4» Anuvak:5» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब विद्वानों के करने योग्य काम को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (वरिमन्) बहुत गुणों से युक्त (वर्ष्मन्) वर्षनेवाले विद्वन् ! (यथा) जैसे (सवितुः) सम्पूर्ण संसार के उत्पन्न करनेवाले (दैव्यस्य) श्रेष्ठ पदार्थों में साक्षात् किये गये के मध्य में (यत्) जो (विश्वम्) सम्पूर्ण (भुवनम्) संसार को जिसमें प्राणी होते हैं (धारयिष्यति) धारण करावेगा (पृथिव्याः) और भूमि के सम्बन्ध में (स्वङ्गुरिः) श्रेष्ठ अङ्गुलियों से युक्त हस्तवाला हुआ (अस्य) इस (दिवः) सुन्दर का (यत्) जो (सत्यम्) सत्य (तत्) उसको (सुवति) प्रेरणा करता है (तत्) उसको प्राप्त होकर जैसे मैं (न) नहीं (प्रमिये) मरण को प्राप्त होऊँ, वैसे ही आप (आ) आचरण करो ॥४॥
Connotation: - हे विद्वानो ! जो ब्रह्म सब जगत् को धारण करता और सूर्य और वायु से धारण कराता है, वेद के द्वारा सब सत्य का प्रकाश कराता है, उसी की हम लोग उपासना करें ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ विद्वत्कर्त्तव्यकर्माह ॥

Anvay:

हे वरिमन् वर्ष्मन् विद्वन् ! यथा सवितुर्दैव्यस्य मध्ये यद् विश्वं भुवनं धारयिष्यति पृथिव्याः स्वङ्गुरिः सन्नस्य दिवोऽस्य यत्सत्यं तत्सुवति तत्प्राप्य यथाऽहं न प्रमिये तथैव त्वमाचर ॥४॥

Word-Meaning: - (न) निषेधे (प्रमिये) मरणं प्राप्नुयाम् (सवितुः) सकलजगदुत्पादकस्य (दैव्यस्य) दिव्येषु पदार्थेषु साक्षात्कृतस्य (तत्) (यथा) (विश्वम्) समग्रम् (भुवनम्) भवन्ति भूतानि यस्मिंस्तत् (धारयिष्यति) (यत्) (पृथिव्याः) भूमेः (वरिमन्) बहुगुणयुक्त (आ) समन्तात् (स्वङ्गुरिः) शोभना अङ्गुलयो यस्य सः (वर्ष्मन्) यो वर्षति तत्सम्बुद्धौ (दिवः) कमनीयस्य (सुवति) (सत्यम्) (अस्य) (तत्) ॥४॥
Connotation: - हे विद्वांसो ! यद्ब्रह्म सर्वं जगद्धरति सूर्यवायुभ्यां धारयति च वेदद्वारा सर्वं सत्यं प्रकाशयति च तदेव वयमुपास्महे ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे विद्वानांनो ! जे ब्रह्म सर्व जगाला धारण करते, सूर्य व वायूद्वारे धारण करविते, वेदाद्वारे सत्याचा प्रकाश करते त्याचीच आम्ही सर्व लोकांनी उपासना करावी. ॥ ४ ॥