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त्रिर॒न्तरि॑क्षं सवि॒ता म॑हित्व॒ना त्री रजां॑सि परि॒भूस्त्रीणि॑ रोच॒ना। ति॒स्रो दिवः॑ पृथि॒वीस्ति॒स्र इ॑न्वति त्रि॒भिर्व्र॒तैर॒भि नो॑ रक्षति॒ त्मना॑ ॥५॥

English Transliteration

trir antarikṣaṁ savitā mahitvanā trī rajāṁsi paribhus trīṇi rocanā | tisro divaḥ pṛthivīs tisra invati tribhir vratair abhi no rakṣati tmanā ||

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Pad Path

त्रिः। अ॒न्तरि॑क्षम्। स॒वि॒ता। म॒हि॒ऽत्व॒ना। त्री। रजां॑सि। प॒रि॒ऽभूः। त्रीणि॑। रो॒च॒ना। ति॒स्रः। दिवः॑। पृ॒थि॒वीः। ति॒स्रः। इ॒न्व॒ति॒। त्रि॒ऽभिः। व्र॒तैः। अ॒भि। नः॒। र॒क्ष॒ति॒। त्मना॑ ॥५॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:53» Mantra:5 | Ashtak:3» Adhyay:8» Varga:4» Mantra:5 | Mandal:4» Anuvak:5» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (परिभूः) सब स्थानों में वर्त्तमान और सब के ऊपर विराजमान (सविता) सम्पूर्ण ऐश्वर्य्यों का उत्पन्न करनेवाला परमेश्वर (महित्वना) महिमा और (त्मना) आत्मा से (अन्तरिक्षम्) भीतर नहीं नाश होनेवाले आकाश को (त्रिः) तीन वार (इन्वति) व्याप्त होता (त्री) तीन प्रकार के (रजांसि) उत्तम मध्यम निकृष्ट लोकों को व्याप्त होता (त्रीणि) तीन प्रकार के (रोचना) बिजुली, भौतिक और सूर्यरूप ज्योतियों को व्याप्त होता (तिस्रः) तीन प्रकार के (दिवः) प्रकाशों और (तिस्रः) तीन प्रकार की (पृथिवीः) भूमियों को व्याप्त होता और (त्रिभिः) तीन (व्रतैः) नियमों से (नः) हम लोगों की (अभि) सब ओर से (रक्षति) रक्षा करता है, वही सर्वदा सेवा करने योग्य है ॥५॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जो परमेश्वर तीन प्रकार के सम्पूर्ण त्रिगुण अर्थात् सतोगुण, रजोगुण, तमोगुण स्वरूप जगत् को रच के उत्तम नियमों से पालन करता है, उसी की उपासना करो ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यः परिभूः सविता परमेश्वरो महित्वना त्मनाऽन्तरिक्षं त्रिरिन्वति त्री रजांसीन्वति त्रीणि रोचनेन्वति तिस्रो दिवस्तिस्रः पृथिवीरिन्वति त्रिभिर्व्रतैर्नोऽभि रक्षति स एव सर्वदा भजनीयः ॥५॥

Word-Meaning: - (त्रिः) त्रिवारम् (अन्तरिक्षम्) अन्तरक्षयमाकशम् (सविता) सकलैश्वर्य्योत्पादकः (महित्वना) महत्त्वेन (त्री) त्रीणि त्रिप्रकारका (रजांसि) उत्तममध्यमनिकृष्टानि (परिभूः) यः सर्वतो भवति सर्वेषामुपरि विराजमानः (त्रीणि) त्रिप्रकाराणि (रोचना) विद्युद्भौतिकसूर्यरूपाणि ज्योतींषि (तिस्रः) त्रिविधाः (दिवः) प्रकाशान् (पृथिवीः) भूमीः (तिस्रः) (इन्वति) व्याप्नोति (त्रिभिः) (व्रतैः) नियमैः (अभि) (नः) अस्मान् (रक्षति) (त्मना) आत्मना ॥५॥
Connotation: - हे मनुष्या ! यः परमेश्वरस्त्रिविधं सर्वं त्रिगुणमयं जगन्निर्माय सुनियमैः पालयति तमेवोपाध्वम् ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो! जो परमेश्वर तीन प्रकारच्या संपूर्ण त्रिगुण (अर्थात् सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण) जगाची निर्मिती करून उत्तम नियमाने पालन करतो त्याचीच उपासना करा. ॥ ५ ॥