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अदा॑भ्यो॒ भुव॑नानि प्र॒चाक॑शद्व्र॒तानि॑ दे॒वः स॑वि॒ताभि र॑क्षते। प्रास्रा॑ग्बा॒हू भुव॑नस्य प्र॒जाभ्यो॑ धृ॒तव्र॑तो म॒हो अज्म॑स्य राजति ॥४॥

English Transliteration

adābhyo bhuvanāni pracākaśad vratāni devaḥ savitābhi rakṣate | prāsrāg bāhū bhuvanasya prajābhyo dhṛtavrato maho ajmasya rājati ||

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Pad Path

अदा॑भ्यः। भुव॑नानि। प्र॒ऽचाक॑शत्। व्र॒तानि॑। दे॒वः। स॒वि॒ता। अ॒भि। र॒क्ष॒ते॒। प्र। अ॒स्रा॒क्। बा॒हू इति॑। भुव॑नस्य। प्र॒ऽजाभ्यः॑। धृ॒तऽव्र॑त। म॒हः। अज्म॑स्य। रा॒ज॒ति॒ ॥४॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:53» Mantra:4 | Ashtak:3» Adhyay:8» Varga:4» Mantra:4 | Mandal:4» Anuvak:5» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (अदाभ्यः) नहीं नष्ट होने योग्य अर्थात् नहीं मन से छोड़ने योग्य (सविता) सूर्य्य (धृतव्रतः) व्रतों को धारण करनेवाला (देवः) सुन्दर (महः) बड़े (अज्मस्य) अन्तरिक्ष में छोड़े हुए (भुवनस्य) लोक (प्रजाभ्यः) प्रजाओं के लिये (व्रतानि) सत्यभाषण आदि व्रतों को और (भुवनानि) लोकोत्पन्न समस्त वस्तुओं को (प्रचाकशत्) प्रकाश करता (बाहू) बल और वीर्य्य को (प्र, अस्राक्) उत्पन्न करता सब की (अभि) प्रत्यक्ष (रक्षते) रक्षा करता और (राजति) प्रकाश करता है, वही सब लोगों को उपासना करने योग्य है ॥४॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जिस परमेश्वर ने प्रजाओं में सम्पूर्ण हित सिद्ध किया और जो भीतर-बाहर अभिव्याप्त होके सब के लिये कर्म्मों का फल देता है, वही निरन्तर ध्यान करने योग्य है ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! योऽदाभ्यः सविता धृतव्रतो देवो महोऽज्मस्य भुवनस्य मध्ये प्रजाभ्यो व्रतानि भुवनानि प्रचाकशद् बाहू प्रास्राक् सर्वमभि रक्षते राजति स एव सर्वैरुपासनीयः ॥४॥

Word-Meaning: - (अदाभ्यः) अहिंसनीयः (भुवनानि) सर्वाणि लोकजातानि (प्रचाकशत्) प्रकाशते (व्रतानि) सत्यभाषणादीनि (देवः) कमनीयः (सविता) सूर्य्यः (अभि) आभिमुख्ये (रक्षते) (प्र) (अस्राक्) सृजति (बाहू) बलवीर्य्ये (भुवनस्य) (प्रजाभ्यः) (धृतव्रतः) धृतानि व्रतानि येन सः (महः) महतः (अज्मस्य) अन्तरिक्षे प्रक्षिप्तस्य (राजति) ॥४॥
Connotation: - हे मनुष्या ! येन परमेश्वरेण प्रजासु सर्वं हितं साधितं योऽन्तर्बहिरभिव्याप्य सर्वेभ्यः कर्मफलानि प्रयच्छति स एव सततं ध्येयः ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो ! ज्या परमेश्वराने प्रजेचे संपूर्ण हित सिद्ध केलेले आहे व जो आत बाहेर अभिव्याप्त असून सर्वांना कर्माचे फळ देतो तोच सदैव ध्यान करण्यायोग्य आहे. ॥ ४ ॥