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तद्दे॒वस्य॑ सवि॒तुर्वार्यं॑ म॒हद्वृ॑णी॒महे॒ असु॑रस्य॒ प्रचे॑तसः। छ॒र्दिर्येन॑ दा॒शुषे॒ यच्छ॑ति॒ त्मना॒ तन्नो॑ म॒हाँ उद॑यान्दे॒वो अ॒क्तुभिः॑ ॥१॥

English Transliteration

tad devasya savitur vāryam mahad vṛṇīmahe asurasya pracetasaḥ | chardir yena dāśuṣe yacchati tmanā tan no mahām̐ ud ayān devo aktubhiḥ ||

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Pad Path

तत्। दे॒वस्य॑। स॒वि॒तुः। वार्य॑म्। म॒हत्। वृ॒णी॒महे॑। असु॑रस्य। प्रऽचे॑तसः। छ॒र्दिः। येन॑। दा॒शुषे॑। यच्छ॑ति। त्मना॑। तत्। नः॒। म॒हान्। उत्। अ॒या॒न्। दे॒वः। अ॒क्तुऽभिः॑ ॥१॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:53» Mantra:1 | Ashtak:3» Adhyay:8» Varga:4» Mantra:1 | Mandal:4» Anuvak:5» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब सात ऋचावाले त्रेपनवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में सविता परमात्मा के गुणों का वर्णन करते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! हम लोग जिस (सवितुः) वृष्टि आदि की उत्पत्ति करनेवाले (देवस्य) निरन्तर प्रकाशमान (प्रचेतसः) जनानेवाले (असुरस्य) मेघ के (महत्) बड़े (वार्यम्) स्वीकार करने योग्य पदार्थों वा जलों में उत्पन्न (छर्दिः) गृह का (वृणीमहे) स्वीकार करते हैं (तत्) उसका आप लोग स्वीकार करो (येन) जिस कारण से विद्वान् जन (त्मना) आत्मा से (दाशुषे) दाता जन के लिये स्वीकार करने योग्यों वा जलों में उत्पन्न हुए बड़े गृह को (यच्छति) देता है (तत्) उसको (महान्) बड़ा (देवः) प्रकाशमान होता हुआ (अक्तुभिः) रात्रियों से (नः) हम लोगों के लिये (उत्, अयान्) उत्कृष्टता से देवे ॥१॥
Connotation: - जो विद्वान् जन मेघ और सूर्य्य के सम्बन्ध की विद्या को जानते हैं, वे दिन और रात्रियों में बड़े कार्य्य को सिद्ध करके आनन्दित होते हैं ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ सवितुर्गुणानाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! वयं यत्सवितुर्देवस्य प्रचेतसोऽसुरस्य मेघस्य महद्वार्यं छर्दिर्वृणीमहे तद्यूयं स्वीकुरुत येन विद्वांस्त्मना दाशुषे वार्यं महच्छर्दिर्यच्छति तन्महान् देवोऽक्तुभिर्न उदयान् ॥१॥

Word-Meaning: - (तत्) (देवस्य) देदीप्यमानस्य (सवितुः) वृष्ट्यादीनां प्रसवकर्त्तुः (वार्यम्) वरणीयेषु वा जलेषु भवम् (महत्) (वृणीमहे) स्वीकुर्म्महे (असुरस्य) मेघस्य (प्रचेतसः) प्रज्ञापकस्य (छर्दिः) गृहम्। छर्दिरिति गृहनामसु पठितम्। (निघं०३.४) (येन) (दाशुषे) दात्रे (यच्छति) (त्मना) आत्मना (तत्) (नः) अस्मभ्यम् (महान्) (उत्) (अयान्) यच्छतु (देवः) द्योतमानः (अक्तुभिः) रात्रिभिः ॥१॥
Connotation: - ये विद्वांसो मेघस्य सूर्य्यस्य च सम्बन्धविद्यां जानन्ति तेऽहोरात्रेषु महत्कार्य्यं संसाध्याऽऽनन्दन्ति ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात सविता अर्थात सर्व जग उत्पन्न करणाऱ्या परमात्म्याच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - जे विद्वान मेघ व सूर्यासंबंधी विद्या जाणतात ते दिवसरात्र महान कार्य सिद्ध करून आनंदित होतात. ॥ १ ॥