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ता घा॒ ता भ॒द्रा उ॒षसः॑ पु॒रासु॑रभि॒ष्टिद्यु॑म्ना ऋ॒तजा॑तसत्याः। यास्वी॑जा॒नः श॑शमा॒न उ॒क्थैः स्तु॒वञ्छंस॒न्द्रवि॑णं स॒द्य आप॑ ॥७॥

English Transliteration

tā ghā tā bhadrā uṣasaḥ purāsur abhiṣṭidyumnā ṛtajātasatyāḥ | yāsv ījānaḥ śaśamāna ukthaiḥ stuvañ chaṁsan draviṇaṁ sadya āpa ||

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Pad Path

ताः। घ॒। ताः। भ॒द्राः। उ॒षसः॑। पु॒रा। आ॒सुः॒। अ॒भि॒ष्टिऽद्यु॑म्नाः। ऋ॒तजा॑तऽसत्याः। यासु॑। ई॒जा॒नः। श॒श॒मा॒नः। उ॒क्थैः। स्तु॒वन्। शंस॑न्। द्रवि॑णम्। स॒द्यः। आप॑ ॥७॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:51» Mantra:7 | Ashtak:3» Adhyay:8» Varga:2» Mantra:2 | Mandal:4» Anuvak:5» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (ईजानः) गमन करनेवाला जन (शशमानः) प्रशंसा को प्राप्त होता (उक्थैः) कहने योग्य वचनों से (स्तुवन्) स्तुति करता और (शंसन्) प्रशंसा करता हुआ (यासु) जिनमें (द्रविणम्) धन वा यश को (सद्यः) शीघ्र (आप) प्राप्त होता है (ताः) वे (उषसः) प्रभात वेला (भद्राः) कल्याण करनेवाली जैसी (पुरा) पहिले (आसुः) हुईं वैसी फिर वर्त्तमान हैं, उनके समान जो (अभिष्टिद्युम्ना) प्रशंसित यशरूप धन से युक्त (ऋतजातसत्याः) सत्य से उत्पन्न हुए व्यवहारों में श्रेष्ठ ब्रह्मचारिणी हैं (ताः, घा) उन्हीं को आप लोग गृहाश्रम के लिये प्राप्त होओ ॥७॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सूर्य्य के साथ प्रातर्वेला सदा वर्त्तमान है, वैसे ही स्वयंवर जिन्होंने किया, ऐसे स्त्री-पुरुष यशस्वी और सत्य आचरणवाले होवें ॥७॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! ईजानः शशमान उक्थैः स्तुवच्छंसन् यासु द्रविणं सद्य आप ता उषसो भद्रा यादृश्यः पुराऽऽसुस्तादृश्यः पुनर्वर्त्तन्ते तद्वद्या अभिष्टिद्युम्ना ऋतजातसत्या ब्रह्मचारिण्यः सन्ति ता घा यूयं गृहाश्रमाय प्राप्नुत ॥७॥

Word-Meaning: - (ताः) (घा) एव। अत्र ऋचि तुनुघेति दीर्घः। (ताः) (भद्राः) कल्याणकारीः (उषसः) प्रभातवेलाः (पुरा) (आसुः) आसन् (अभिष्टिद्युम्नाः) प्रशंसितयशोधनाः (ऋतजातसत्याः) ऋताज्जातेषु व्यवहारेषु सत्सु साध्व्यः (यासु) (ईजानः) (शशमानः) प्राप्तप्रशंसः सन् (उक्थैः) वक्तुमर्हैर्वचनैः (स्तुवन्) (शंसन्) प्रशंसन् (द्रविणम्) धनं यशो वा (सद्यः) शीघ्रम् (आप) प्राप्नोति ॥७॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सूर्य्येण सहोषा सदा वर्त्तते तथैव कृतस्वयंवरौ स्त्रीपुरुषौ यशस्विनौ सत्याचरणौ भवेताम् ॥७॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जशी सूर्यासह उषा सदैव असते तसे स्वयंवर केलेल्या स्त्री-पुरुषांनी यशस्वी व सत्याचरणी व्हावे. ॥ ७ ॥