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या वां॒ सन्ति॑ पुरु॒स्पृहो॑ नि॒युतो॑ दा॒शुषे॑ नरा। अ॒स्मे ता य॑ज्ञवाह॒सेन्द्र॑वायू॒ नि य॑च्छतम् ॥४॥

English Transliteration

yā vāṁ santi puruspṛho niyuto dāśuṣe narā | asme tā yajñavāhasendravāyū ni yacchatam ||

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Pad Path

याः। वा॒म्। सन्ति। पु॒रु॒ऽस्पृहः॑। नि॒ऽयुतः॑। दा॒शुषे॑। न॒रा॒। अस्मे इति॑। ताः। य॒ज्ञ॒ऽवा॒ह॒सा॒। इन्द्र॑वायू॒ इति॑। नि। य॒च्छ॒त॒म् ॥४॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:47» Mantra:4 | Ashtak:3» Adhyay:7» Varga:23» Mantra:4 | Mandal:4» Anuvak:5» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (यज्ञवाहसा) यज्ञ को प्राप्त करानेवाले (नरा) नायक (इन्द्रवायू) धनी और विद्वान् तथा राजा और मन्त्री जनो ! (वाम्) आप दोनों की (याः) जो (नियुतः) निश्चित (पुरुस्पृहः) बहुतों से ईप्सा करने योग्य क्रिया (दाशुषे) दाता जन के लिये (सन्ति) हैं (ताः) उन क्रियाओं को (अस्मे) हम लोगों के लिये (नि, यच्छतम्) अतिशय करके दीजिये ॥४॥
Connotation: - हे राजा और मन्त्री जनो ! आप लोगों को चाहिये कि हम प्रजा जनों की इच्छा पूर्ण करें, जिससे हम लोग आप लोगों का पूर्ण काम करें ॥४॥ इस सूक्त में विद्वान् राजा और अमात्य के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछिले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति है, यह जानना चाहिये ॥४॥ यह सैंतालीसवाँ सूक्त और तेईसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे यज्ञवाहसा नरेन्द्रवायू ! वां या नियुतः पुरुस्पृहो दाशुषे सन्ति ता अस्मे नि यच्छतम् ॥४॥

Word-Meaning: - (याः) (वाम्) युवयोः (सन्ति) (पुरुस्पृहः) बहुभिः स्पर्हणीयाः क्रियाः (नियुतः) निश्चितः (दाशुषे) दात्रे (नरा) नायकौ (अस्मे) अस्मभ्यम् (ताः) (यज्ञवाहसा) यज्ञप्रापकौ (इन्द्रवायू) धनिविद्वांसौ राजामात्यौ (नि) (यच्छतम्) नितरां दद्यातम् ॥४॥
Connotation: - हे राजाऽमात्या ! युष्माभिरस्माकं प्रजाजनानामिच्छाः पूर्णाः कार्य्या यतो वयं युष्माकमलं कामं कुर्य्याम ॥४॥ अत्र विद्वद्राजामात्यगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति बोध्यम् ॥४॥ इति सप्तचत्वारिंशत्तमं सूक्तं त्रयोविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

N/A

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Connotation: - हे राजा व मंत्र्यांनो ! तुम्ही प्रजेची इच्छा पूर्ण करा. ज्यामुळे आम्ही तुमचे पूर्ण कार्य करू. ॥ ४ ॥