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इन्द्र॑श्च वायवेषां॒ सोमा॑नां पी॒तिम॑र्हथः। यु॒वां हि यन्तीन्द॑वो नि॒म्नमापो॒ न स॒ध्र्य॑क् ॥२॥

English Transliteration

indraś ca vāyav eṣāṁ somānām pītim arhathaḥ | yuvāṁ hi yantīndavo nimnam āpo na sadhryak ||

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Pad Path

इन्द्रः॑। च॒। वा॒यो॒ इति॑। ए॒षा॒म्। सोमा॑नाम्। पी॒तिम्। अ॒र्ह॒थः॒। यु॒वाम्। हि। यन्ति॑। इन्द॑वः। निम्नम्। आपः॑। न। स॒ध्र्य॑क् ॥२॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:47» Mantra:2 | Ashtak:3» Adhyay:7» Varga:23» Mantra:2 | Mandal:4» Anuvak:5» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (वायो) बल से युक्त ! आप (च) और (इन्द्रः) अत्यन्त ऐश्वर्यवान् (युवाम्) आप दोनों (आपः) जैसे जल (निम्नम्) नीचे के स्थल के (न) वैसे जिस प्रकार (इन्दवः) मिलनेवाले और सत्कार करने योग्य जन और (सध्र्यक्) एक साथ सत्कार करनेवाला ये सब (यन्ति) प्राप्त होते हैं (हि) उसी प्रकार आप दोनों (एषाम्) इन (सोमानाम्) ओषधियों से उत्पन्न हुए रसों के (पीतिम्) पान के (अर्हथः) योग्य हैं ॥२॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जैसे यज्ञ जलों को प्राप्त होते हैं, वैसे ही विद्वान् विद्याव्यवहार के योग्य होते हैं ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे वायो ! त्वमिन्द्रश्च युवामापो निम्नं न यथेन्दवः सध्र्यक् यन्ति तथा हि युवामेषां सोमानां पीतिमर्हथः ॥२॥

Word-Meaning: - (इन्द्रः) परमैश्वर्य्यवान् (च) (वायो) बलयुक्त (एषाम्) (सोमानाम्) ओषध्युत्पन्नानां रसानाम् (पीतिम्) पानम् (अर्हथः) (युवाम्) (हि) (यन्ति) (इन्दवः) सङ्गन्तारः पूजनीयाः। इन्दुरिति यज्ञनामसु पठितम्। (निघं०३.१७) (निम्नम्) (आपः) (न) इव (सध्र्यक्) यः सहाञ्चति ॥२॥
Connotation: - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। यथा यज्ञा अपो गच्छन्ति तथैव विद्वांसो विद्याव्यवहारमर्हन्ति ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जसे यज्ञामुळे जल प्राप्त होते, तसेच विद्वान विद्याव्यवहारासाठी योग्य असतात. ॥ २ ॥