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तं वां॒ रथं॑ व॒यम॒द्या हु॑वेम पृथु॒ज्रय॑मश्विना॒ संग॑तिं॒ गोः। यः सू॒र्यां वह॑ति वन्धुरा॒युर्गिर्वा॑हसं पुरु॒तमं॑ वसू॒युम् ॥१॥

English Transliteration

taṁ vāṁ rathaṁ vayam adyā huvema pṛthujrayam aśvinā saṁgatiṁ goḥ | yaḥ sūryāṁ vahati vandhurāyur girvāhasam purutamaṁ vasūyum ||

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Pad Path

तम्। वा॒म्। रथ॑म्। व॒यम्। अ॒द्य। हु॒वे॒म॒। पृ॒थु॒ऽज्रय॑म्। अ॒श्वि॒ना॒। सम्ऽग॑तिम्। गोः। यः। सू॒र्याम्। वह॑ति। व॒न्धु॒र॒ऽयुः। गिर्वा॑हसम्। पु॒रु॒ऽतम॑म्। व॒सु॒ऽयुम् ॥१॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:44» Mantra:1 | Ashtak:3» Adhyay:7» Varga:20» Mantra:1 | Mandal:4» Anuvak:4» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब सात ऋचावाले चवालीसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में अध्यापक और उपदेशकविषय में शिल्पविद्याविषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (अश्विना) अध्यापक और उपदेशक जनो ! (वयम्) हम लोग (अद्या) आज (वाम्) तुम दोनों के (पृथुज्रयम्) विस्तीर्ण और बहुत गतिवाले (तम्) उस (रथम्) रमण करने योग्य वाहन को (हुवेम) ग्रहण करें और (गोः) पृथिवी के (सङ्गतिम्) सङ्ग को ग्रहण करें (यः) जो (वन्धुरायुः) थोड़ी अवस्थावाला (सूर्य्याम्) सूर्य्यसम्बन्धिनी कान्ति अर्थात् तेज की (वहति) प्राप्ति करता है जिस (पुरुतमम्) बहुतों को ग्लानि करने (गिर्वाहसम्) वाणी से प्राप्त करने वा प्राप्त होने (वसूयुम्) और अपने को द्रव्य की इच्छा करनेवाले का ग्रहण करें, वही सुखी होता है ॥१॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जिस अग्नि और जल से शिल्पविद्या ही साधन जिसका ऐसा रथ आदि उत्पन्न किया जाता है, वही अपने आत्मा के तुल्य सब को प्रसन्न करता है ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथाध्यापकोपदेशकविषये शिल्पविद्याविषयमाह ॥

Anvay:

हे अश्विना ! वयमद्या वां पृथुज्रयन्तं रथं हुवेम गोः सङ्गतिं हुवेम यो वन्धुरायुः सूर्य्यां वहति यं पुरुतमं गिर्वाहसं वसूयुं हुवेम स एव सुखी भवति ॥१॥

Word-Meaning: - (तम्) (वाम्) (रथम्) रमणीयं यानम् (वयम्) (अद्या) अस्मिन्नहनि। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (हुवेम) आदद्याम (पृथुज्रयम्) विस्तीर्णं बहुगतिम् (अश्विना) अध्यापकोपदेशकौ (सङ्गतिम्) (गोः) पृथिव्याः (यः) (सूर्य्याम्) सूर्य्यसम्बन्धिनीं कान्तिम् (वहति) (वन्धुरायुः) वन्धुरमायुर्यस्य सः (गिर्वाहसम्) यो गिरा वहति प्राप्यते वा तम् (पुरुतमम्) यः पुरून् बहून् ताम्यति तम् (वसूयुम्) आत्मनो वसु द्रव्यमिच्छुम् ॥१॥
Connotation: - हे मनुष्या ! येनाग्निजलाभ्यां शिल्पविद्यासाधनं रथादिकं सम्पाद्यते स एव स्वात्मवत् सर्वान् प्रीणाति ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात अध्यापक, उपदेशक, राजा, अमात्य व सज्जनाच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वीच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - हे माणसांनो ! शिल्पविद्या हे साधन असलेला रथ अग्नी व जलाने उत्पन्न केला जातो, तोच आपल्या आत्म्याप्रमाणे सर्वांना प्रसन्न करतो. ॥ १ ॥