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अ॒हं ता विश्वा॑ चकरं॒ नकि॑र्मा॒ दैव्यं॒ सहो॑ वरते॒ अप्र॑तीतम्। यन्मा॒ सोमा॑सो म॒मद॒न्यदु॒क्थोभे भ॑येते॒ रज॑सी अपा॒रे ॥६॥

English Transliteration

ahaṁ tā viśvā cakaraṁ nakir mā daivyaṁ saho varate apratītam | yan mā somāso mamadan yad ukthobhe bhayete rajasī apāre ||

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Pad Path

अ॒हम्। ता। विश्वा॑। च॒क॒र॒म्। नकिः॑। मा॒। दैव्य॑म्। सहः॑। व॒र॒ते॒। अप्र॑तिऽइतम्। यत्। मा॒। सोमा॑सः। म॒मद॑न्। यत्। उ॒क्था। उ॒भे इति॑। भ॒ये॒ते॒ इति॑। रज॑सी॒ इति॑। अ॒पा॒रे इति॑ ॥६॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:42» Mantra:6 | Ashtak:3» Adhyay:7» Varga:18» Mantra:1 | Mandal:4» Anuvak:4» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (अहम्) मैं (ता) उन (विश्वा) सब कामों को (चकरम्) निरन्तर करता हूँ तथा जीव (यत्) जिस (दैव्यम्) विद्वानों में प्रिय (मा) मुझको और (अप्रतीतम्) नहीं जाने गये (सहः) बल को (वरते) स्वीकार करता है (यत्) जिस (मा) मेरी सेवा करते (सोमासः) ऐश्वर्य्यवाले (ममदन्) प्रसन्न होते हैं और मुझ से (उक्था) प्रशंसा करने योग्य (उभे) दोनों (अपारे) पाररहित अपरिमित (रजसी) सूर्य्यलोक और भूमिलोक (भयेते) कँपते हैं, उस मेरे सदृश कोई भी (नकिः) नहीं है ॥६॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जो पदार्थ प्रत्यक्ष और जो नहीं प्रत्यक्ष हैं, वे सब मुझ से ही बनाये गये, मेरे में अनन्त बल है, मुझको प्राप्त होकर सम्पूर्ण आनन्द को प्राप्त होते हैं और मेरे ही भय से सब लोगों के सहचारी जीव डरते हैं ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! योऽहं ता विश्वा चकरं जीवो यद् दैव्यं माप्रतीतं सहो वरते यद्यं माश्रिताः सोमासो ममदन् मत्त उक्थोभे अपारे रजसी भयेते तेन मया सदृशः कोऽपि नकिरस्ति ॥६॥

Word-Meaning: - (अहम्) (ता) तानि (विश्वा) सर्वाणि (चकरम्) भृशं करोमि (नकिः) निषेधे (मा) माम् (दैव्यम्) देवेषु विद्वत्सु प्रियम् (सहः) बलम् (वरते) स्वीकरोति (अप्रतीतम्) अप्रज्ञातम् (यत्) यम् (मा) माम् (सोमासः) ऐश्वर्य्यवन्तः (ममदन्) हर्षन्ति (यत्) यम् (उक्था) प्रशंसनीये (उभे) (भयेते) (रजसी) द्यावापृथिव्यौ (अपारे) पाररहितेऽपरिमिते ॥६॥
Connotation: - हे मनुष्या ! ये पदार्था दृश्यन्ते ये चाऽदृष्टाः सन्ति ते सर्वे मयैव निर्मिता मय्यप्रमेयं बलं मां प्राप्य सर्वानन्दं लभन्ते ममैव भयात् सर्वैर्लोकैः सहचरिता जीवा बिभ्यति ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो! जे पदार्थ प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष असतात ते माझ्याकडूनच बनविले गेलेले आहेत. माझ्यात अनंत बल आहे. माणसे मला प्राप्त करून संपूर्ण आनंद मिळवितात व माझ्या भयाने सर्व लोकांतील सहचारी जीव घाबरतात. ॥ ६ ॥