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अ॒हं राजा॒ वरु॑णो॒ मह्यं॒ तान्य॑सु॒र्या॑णि प्रथ॒मा धा॑रयन्त। क्रतुं॑ सचन्ते॒ वरु॑णस्य दे॒वा राजा॑मि कृ॒ष्टेरु॑प॒मस्य॑ व॒व्रेः ॥२॥

English Transliteration

ahaṁ rājā varuṇo mahyaṁ tāny asuryāṇi prathamā dhārayanta | kratuṁ sacante varuṇasya devā rājāmi kṛṣṭer upamasya vavreḥ ||

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Pad Path

अ॒हम्। राजा॑। वरु॑णः। मह्य॑म्। तानि॑। अ॒सु॒र्या॑णि। प्र॒थ॒मा। धा॒र॒य॒न्त॒। क्रतु॑म्। स॒च॒न्ते॒। वरु॑णस्य। दे॒वाः। राजा॑मि। कृ॒ष्टेः। उ॒प॒ऽमस्यः॑। व॒व्रेः ॥२॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:42» Mantra:2 | Ashtak:3» Adhyay:7» Varga:17» Mantra:2 | Mandal:4» Anuvak:4» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब ईश्वरविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे जो (वरुणः) सम्पूर्ण उत्तम प्रबन्धों का कर्त्ता (राजा) प्रकाशमान (अहम्) मैं जगदीश्वर (वरुणस्य) उत्तम सम्बन्ध में और (वव्रेः) स्वीकार करने योग्य (कृष्टेः) मनुष्य के सम्बन्ध में तथा (उपमस्य) उपमायुक्त जगत् के बीच में (राजामि) प्रकाशित होता हूँ उस (मह्यम्) मेरे लिये (देवाः) विद्वान् जन तृप्त होते हैं तथा जो (प्रथमा) आदि से वर्त्तमान (असुर्य्याणि) मेघादिकों के चिह्न (तानि) उनको (धारयन्त) धारण करते हैं और (क्रतुम्) बुद्धि को (सचन्ते) प्राप्त होते हैं, वैसे तुम लोग भी आचरण करो ॥२॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य सर्वत्र व्याप्त, बुद्धि और धन के देनेवाले जगत् के स्वामी मुझ परमात्मा को भजते हैं, वे सब सुखों को भजते हैं ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथेश्वरविषयमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यथा यो वरुणो राजाऽहं वरुणस्य वव्रेः कृष्टेरुपमस्य जगतो मध्ये राजामि तस्मै मह्यं देवाः प्रीणन्ति यानि प्रथमाऽसुर्य्याणि तानि धारयन्त क्रतुं सचन्ते तथा यूयमप्याचरत ॥२॥

Word-Meaning: - (अहम्) जगदीश्वरः (राजा) प्रकाशमानः (वरुणः) सर्वोत्तमप्रबन्धकर्त्ता (मह्यम्) (तानि) (असुर्य्याणि) असुराणां मेघादीनामिमानि चिह्नानि (प्रथमा) आदिमानि (धारयन्त) धरन्ति (क्रतुम्) प्रज्ञाम् (सचन्ते) प्राप्नुवन्ति (वरुणस्य) सम्बन्धस्योत्तमस्य (देवाः) विद्वांसः (राजामि) प्रकाशे (कृष्टेः) मनुष्यस्य (उपमस्य) उपमायुक्तस्य (वव्रेः) स्वीकर्त्तव्यस्य ॥२॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये मनुष्याः सर्वत्र व्याप्तं बुद्धिधनप्रदं जगतः स्वामिनं मां परमात्मानं भजन्ते ते सर्वाणि भजन्ते ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसे सर्वव्यापक, बुद्धिधन प्रदाता, जगाचा स्वामी (मला) परमात्म्याला भजतात तो सर्वांना भजतात. ॥ २ ॥