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रा॒या व॒यं स॑स॒वांसो॑ मदेम ह॒व्येन॑ दे॒वा यव॑सेन॒ गावः॑। तां धे॒नुमि॑न्द्रावरुणा यु॒वं नो॑ वि॒श्वाहा॑ धत्त॒मन॑पस्फुरन्तीम् ॥१०॥

English Transliteration

rāyā vayaṁ sasavāṁso madema havyena devā yavasena gāvaḥ | tāṁ dhenum indrāvaruṇā yuvaṁ no viśvāhā dhattam anapasphurantīm ||

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Pad Path

रा॒या। व॒यम्। स॒स॒ऽवांसः॑। म॒दे॒म॒। ह॒व्येन॑। दे॒वाः। यव॑सेन। गावः॑। ताम्। धे॒नुम्। इ॒न्द्रा॒व॒रु॒णा॒। यु॒वम्। नः॒। वि॒श्वाहा॑। ध॒त्त॒म्। अन॑पऽस्फुरन्तीम् ॥१०॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:42» Mantra:10 | Ashtak:3» Adhyay:7» Varga:18» Mantra:5 | Mandal:4» Anuvak:4» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब विद्वद्विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - (हव्येन) देने और ग्रहण करने योग्य वस्तु से (देवाः) विद्वान् जन (यवसेन) भूसा आदि से जैसे (गावः) गौवें वैसे (राया) धन से (वयम्) हम लोग (ससवांसः) उत्तम प्रकार शयन करते हुए से (मदेम) आनन्द करें। और हे (इन्द्रावरुणा) अध्यापक और उपदेशको ! (युवम्) आप दोनों (विश्वाहा) सब दिन (अनपस्फुरन्तीम्) दृढ़ निश्चल बुद्धि को उत्पन्न करती और (ताम्, धेनुम्) सम्पूर्ण मनोरथों को पूर्ण करती हुई उस वाणी को (नः) हम लोगों के लिये (धत्तम्) धारण कीजिये ॥१०॥
Connotation: - हे विद्वानो ! हम लोगों में वैसी सम्पूर्ण शास्त्रों में कहे पदार्थविषयक वाणी को स्थित करो, जिससे हम लोग सदा ही आनन्दित होवें ॥१०॥ इस सूक्त में राजा, ईश्वर, ईश्वरोपासना और विद्वानों के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछिले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति है, यह जानना चाहिये ॥१०॥ यह बयालीसवाँ सूक्त और अठारहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ विद्वद्विषयमाह ॥

Anvay:

हव्येन देवा यवसेन गावो राया वयं ससवांसो मदेम। हे इन्द्रावरुणा ! युवं विश्वाहानपस्फुरन्तीं तां धेनुं नो धत्तम् ॥१०॥

Word-Meaning: - (राया) धनेन (वयम्) (ससवांसः) सुशयाना इव (मदेम) (हव्येन) दातुमादातुमर्हेण (देवाः) विद्वांसः (यवसेन) बुसादिनेव (गावः) (ताम्) (धेनुम्) सर्वकामदोग्ध्रीं वाचम् (इन्द्रावरुणा) अध्यापकोपदेशकौ (युवम्) युवाम् (नः) अस्मभ्यम् (विश्वाहा) सर्वाणि दिनानि (धत्तम्) (अनपस्फुरन्तीम्) दृढां निश्चलां प्रज्ञां सम्पादयन्तीम् ॥१०॥
Connotation: - हे विद्वांसोऽस्मासु तादृशीं सर्वशास्त्रोक्तपदार्थविषयां वाचं स्थापयत येन वयं सदैवाऽऽनन्दिताः स्यामेति ॥१०॥ अत्र राजेश्वरोपासनाविद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेद्यम् ॥१०॥ इति द्विचत्वारिंशत्तमं सूक्तमष्टादशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे विद्वानांनो! आमच्यामध्ये संपूर्ण शास्त्रोक्त पदार्थविषयाची अशी वाणी स्थापित करा, ज्यामुळे आम्ही सदैव आनंदित राहावे. ॥ १० ॥