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मम॑ द्वि॒ता रा॒ष्ट्रं क्ष॒त्रिय॑स्य वि॒श्वायो॒र्विश्वे॑ अ॒मृता॒ यथा॑ नः। क्रतुं॑ सचन्ते॒ वरु॑णस्य दे॒वा राजा॑मि कृ॒ष्टेरु॑प॒मस्य॑ व॒व्रेः ॥१॥

English Transliteration

mama dvitā rāṣṭraṁ kṣatriyasya viśvāyor viśve amṛtā yathā naḥ | kratuṁ sacante varuṇasya devā rājāmi kṛṣṭer upamasya vavreḥ ||

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Pad Path

मम॑। द्वि॒ता। रा॒ष्ट्रम्। क्ष॒त्रिय॑स्य। वि॒श्वऽआ॑योः। विश्वे॑। अ॒मृताः॑। यथा॑। नः॒। क्रतु॑म्। स॒च॒न्ते। वरु॑णस्य। दे॒वाः। राजा॑मि। कृ॒ष्टेः। उ॒प॒ऽमस्य॑। व॒व्रेः ॥१॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:42» Mantra:1 | Ashtak:3» Adhyay:7» Varga:17» Mantra:1 | Mandal:4» Anuvak:4» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब दश ऋचावाले बयालीसवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में राजविषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वानो ! (यथा) जैसे (मम) मुझ (विश्वायोः) पूर्ण अवस्थावाले (क्षत्रियस्य) क्षत्रिय के (द्विता) दो का होना तथा (विश्वे) सम्पूर्ण (अमृताः) नाश से रहित जन (नः) हम लोगों के (राष्ट्रम्) राज्य (क्रतुम्) और बुद्धि को (सचन्ते) संबन्धयुक्त करते हैं और (वरुणस्य) श्रेष्ठ (कृष्टेः) खींचते हुए (उपमस्य) उपमायुक्त (वव्रेः) स्वीकार करनेवाले मुझ जन की बुद्धि को (देवाः) प्रकाशमान जन मेलते हैं, वैसे ही इन में मैं (राजामि) शोभित होता हूँ ॥१॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! इस संसार में स्वामी और स्वम् अर्थात् अपना ये दो ही पदार्थ वर्त्तमान हैं और जिस देश में दीर्घकालपर्य्यन्त जीवने और न्याययुक्त स्वभाववाले धार्मिक मन्त्री जन सब प्रकार के गुणग्रहणकर्त्ता श्रेष्ठ उपमा से युक्त वर्त्तमान हैं, वहाँ ही रहता हुआ सज्जन सुख का अत्यन्त भोग करता है ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ राजविषयमाह ॥

Anvay:

हे विद्वांसो ! यथा मम विश्वायोः क्षत्रियस्य द्विता विश्व अमृता नो राष्ट्रं क्रतुञ्च सचन्ते वरुणस्य कृष्टेरुपमस्य वव्रेर्मम क्रतुं देवाः सचन्ते तथैवैतेष्वहं राजामि ॥१॥

Word-Meaning: - (मम) (द्विता) द्वयोर्भावः (राष्ट्रम्) (क्षत्रियस्य) (विश्वायोः) विश्वं पूर्णमायुर्यस्य तस्य (विश्वे) सर्वे (अमृताः) नाशरहिताः (यथा) (नः) अस्माकम् (क्रतुम्) प्रज्ञाम् (सचन्ते) सम्बध्नन्ति (वरुणस्य) श्रेष्ठस्य (देवाः) देदीप्यमानाः (राजामि) (कृष्टेः) कृष्टस्य (उपमस्य) उपमा विद्यते यस्य तस्य (वव्रेः) स्वीकर्तुः ॥१॥
Connotation: - हे मनुष्या ! अस्मिञ्जगति स्वामी स्वं वा द्वावेव पदार्थौ वर्त्तेते यत्र दीर्घजीविनो न्यायशीलवृत्ता धार्मिका अमात्याः सर्वतो गुणग्राहकाः श्रेष्ठोपमा वर्त्तन्ते तत्रैव निवसन्त्सज्जनः सुखमत्यन्तमश्नुते ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात राजा, ईश्वर, ईश्वरोपासना व विद्वानांच्या गुणांंचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - हे माणसांनो ! या जगात स्वामी व स्वं अर्थात आपले असे दोन पदार्थ आहेत. ज्या देशात दीर्घजीवनयुक्त व न्याययुक्त स्वभावाचे, सर्व गुणग्राहककर्ते, श्रेष्ठ उपमा देण्यायोग्य, धार्मिक मंत्रीगण असतात तेथील निवासी सुखाचा अत्यंत भोग करतात. ॥ १ ॥