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इन्द्रा॑ यु॒वं व॑रुणा भू॒तम॒स्या धि॒यः प्रे॒तारा॑ वृष॒भेव॑ धे॒नोः। सा नो॑ दुहीय॒द्यव॑सेव ग॒त्वी स॒हस्र॑धारा॒ पय॑सा म॒ही गौः ॥५॥

English Transliteration

indrā yuvaṁ varuṇā bhūtam asyā dhiyaḥ pretārā vṛṣabheva dhenoḥ | sā no duhīyad yavaseva gatvī sahasradhārā payasā mahī gauḥ ||

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Pad Path

इन्द्रा॑। यु॒वम्। व॒रु॒णा॒। भू॒तम्। अ॒स्याः। धि॒यः। प्रे॒तारा॑। वृ॒ष॒भा॒ऽइ॑व। धे॒नोः। सा। नः॒। दु॒ही॒य॒त्। यव॑साऽइव। ग॒त्वी। स॒हस्र॑ऽधारा। पय॑सा। म॒ही। गौः ॥५॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:41» Mantra:5 | Ashtak:3» Adhyay:7» Varga:15» Mantra:5 | Mandal:4» Anuvak:4» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर अध्यापकोपदेशक विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (इन्द्रा) विद्या और ऐश्वर्य्य से युक्त (वरुणा) प्रशंसित गुणवान् (प्रेतारा) प्राप्त होनेवाले ! (युवम्) आप दोनों (अस्याः) इस (धियः) बुद्धि के (धेनोः) गौ के सम्बन्ध में (वृषभेव) बैल के सदृश (भूतम्) व्यतीत हुए विषय को प्राप्त होओ और जैसे (सा) वह (सहस्रधारा) असंख्य प्रवाहवाली वाणी (मही) बड़ी (गौः) चलनेवाली गौ (पयसा) दुग्धादि से (यवसेव) भूसा आदि के सदृश (नः) हम लोगों को (गत्वी) प्राप्त होकर (दुहीयत्) पूर्ण करे, वैसे श्रेष्ठ गुणों से पूर्ण करो ॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । हे अध्यापक और उपदेशक जनो ! आप सब के लिये ऐसी बुद्धि देओ कि जिससे सब पूर्ण मनोरथवाले होवें ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनरध्यापकोपदेशकविषयमाह ॥

Anvay:

हे इन्द्रावरुणा प्रेतारा ! युवमस्या धियो धेनोर्वृषभेव भूतं प्राप्नुतं यथा सा सहस्रधारा मही गौः पयसा यवसेव नोऽस्मान् गत्वी दुहीयत् तथा शुभगुणैः पूरयतम् ॥५॥

Word-Meaning: - (इन्द्रा) विद्यैश्वर्य्ययुक्त (युवम्) युवाम् (वरुणा) प्रशंसितगुण (भूतम्) अतीतम् (अस्याः) (धियः) प्रज्ञायाः (प्रेतारा) प्राप्तारौ (वृषभेव) (धेनोः) (सा) (नः) अस्मान् (दुहीयत्) प्रपूरयेत् (यवसेव) बुसादिनेव (गत्वी) गत्वा प्राप्य (सहस्रधारा) सहस्राण्यसङ्ख्या धाराः प्रवाहा यस्या वाचः सा (पयसा) दुग्धादिना (मही) महती (गौः) गन्त्री ॥५॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । हे अध्यापकोपदेशका ! भवन्तः सर्वेभ्यः ईदृशीं प्रज्ञां प्रयच्छेयुर्यथा सर्वेऽलङ्कामाः स्युः ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे अध्यापक व उपदेशक लोकांनो! तुम्ही सर्वांसाठी अशी बुद्धी द्या, ज्यामुळे सर्वजण पूर्ण मनोरथ बाळगणारे व्हावेत. ॥ ५ ॥