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इ॒ह त्वा॒ भूर्या च॑रे॒दुप॒ त्मन्दोषा॑वस्तर्दीदि॒वांस॒मनु॒ द्यून्। क्रीळ॑न्तस्त्वा सु॒मन॑सः सपेमा॒भि द्यु॒म्ना त॑स्थि॒वांसो॒ जना॑नाम् ॥९॥

English Transliteration

iha tvā bhūry ā cared upa tman doṣāvastar dīdivāṁsam anu dyūn | krīḻantas tvā sumanasaḥ sapemābhi dyumnā tasthivāṁso janānām ||

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Pad Path

इ॒ह। त्वा॒। भूरि॑। आ। च॒रे॒त्। उप॑। त्मन्। दोषा॑ऽवस्तः। दी॒दि॒ऽवांस॑म्। अनु॑। द्यून्। क्रीळ॑न्तः। त्वा॒। सु॒ऽमन॑सः। स॒पे॒म॒। अ॒भि। द्यु॒म्ना। त॒स्थि॒वांसः॑। जना॑नाम्॥९॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:4» Mantra:9 | Ashtak:3» Adhyay:4» Varga:24» Mantra:4 | Mandal:4» Anuvak:1» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे राजन् ! (इह) इस राजकर्म में आप (त्मन्) आत्मा में (भूरि) बहुत शुभकर्म (उप, आ, चरेत्) करें (सुमनसः) श्रेष्ठ मनयुक्त जन (तस्थिवांसः) स्थिर और (अनु, द्यून्,) प्रतिदिन (क्रीळन्तः) धनुर्वेदविद्या की शिक्षा के लिये और युद्ध के लिये शस्त्रों का अभ्यास करते हुए हम लोग (जनानाम्) राजा और प्रजा के पुरुषों के मध्य में (दीदिवांसम्) प्रकाशमान वा प्रकाश करते हुए और (द्युम्ना) यश वा धन के सहित वर्त्तमान राजमान (त्वा) आपकी (दोषावस्तः) दिन-रात्रि प्रशंसा करें, जो अश्रेष्ठ कर्म्म करो तो (त्वा) आपकी (अभि, सपेम) निन्दा करें ॥९॥
Connotation: - हे राजन् ! जो आप दुर्व्यसनों का त्याग करके धर्म्मसम्बन्धी कर्म्मों को करें तो हम लोग आपके भक्त निरन्तर होवें, जो अन्याय करो तो आप का शीघ्र त्याग करें ॥९॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे राजन्निह भवान् त्मन् भूरि शुभमुपाचरेत् सुमनसस्तस्थिवांसोऽनुद्यून् क्रीळन्तो वयं जनानां दीदिवांसं द्युम्ना यशसा सह वर्त्तमानं राजानं त्वा दोषावस्तः प्रशंसेम यद्यशुभाचारं कुर्यात्तर्हि त्वाऽभि सपेम ॥९॥

Word-Meaning: - (इह) अस्मिन् राजकर्मणि (त्वा) त्वाम् (भूरि) बहु (आ) (चरेत्) (उप) (त्मन्) आत्मनि (दोषावस्तः) अहर्निशम् (दीदिवांसम्) प्रकाशमानं प्रकाशयन्तं वा (अनु) (द्यून्) दिवसान् (क्रीळन्तः) धनुर्वेदविद्याशिक्षणाय युद्धाय शस्त्राऽभ्यासं कुर्वन्तः (त्वा) (सुमनसः) शोभनं मनो येषान्ते (सपेम) आक्रुश्याम निन्द्येम (अभि) (द्युम्ना) यशसा धनेन वा (तस्थिवांसः) स्थिरास्सन्तः (जनानाम्) राजप्रजापुरुषाणाम् ॥९॥
Connotation: - हे राजन् ! यदि भवान् दुर्व्यसनानि त्यक्त्वा धर्म्याणि कर्म्माणि कुर्य्यात्तर्हि वयं तव भक्ता निरन्तरं स्याम यद्यन्यायं कुर्य्यात्तर्हि भवन्तं सद्यस्त्यजेम ॥९॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे राजा ! जर तू दुर्व्यसनाचा त्याग करून धर्मासंबंधी कार्य केलेस तर आम्ही तुझे निरंतर भक्त होऊ. जर अन्याय केलास तर तुझा तात्काळ त्याग करू. ॥ ९ ॥