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ऊ॒र्ध्वो भ॑व॒ प्रति॑ वि॒ध्याध्य॒स्मदा॒विष्कृ॑णुष्व॒ दैव्या॑न्यग्ने। अव॑ स्थि॒रा त॑नुहि यातु॒जूनां॑ जा॒मिमजा॑मिं॒ प्र मृ॑णीहि॒ शत्रू॑न् ॥५॥

English Transliteration

ūrdhvo bhava prati vidhyādhy asmad āviṣ kṛṇuṣva daivyāny agne | ava sthirā tanuhi yātujūnāṁ jāmim ajāmim pra mṛṇīhi śatrūn ||

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Pad Path

ऊ॒र्ध्वः। भ॒व॒। प्रति॑। वि॒ध्य॒। अधि॑। अ॒स्मत्। आ॒विः। कृ॒णु॒ष्व॒। दैव्या॑नि। अ॒ग्ने॒। अव॑। स्थि॒रा। त॒नु॒हि॒। या॒तु॒ऽजूना॑म्। जा॒मिम्। अजा॑मिम्। प्र। मृ॒णी॒हि॒। शत्रू॑न्॥५॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:4» Mantra:5 | Ashtak:3» Adhyay:4» Varga:23» Mantra:5 | Mandal:4» Anuvak:1» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (अग्ने) अग्नि के सदृश तेजस्विन् ! आप (अस्मत्) हम लोगों से (ऊर्ध्वः) उन्नत (अधि) उपरिभाव में अर्थात् ऊपर में रहनेवाले (भव) हूजिये (स्थिरा) स्थिर सेना और (दैव्यानि) विद्वानों के किये कर्म्मों का (तनुहि) विस्तार करिये (यातुजूनाम्) वेग को प्राप्त हुए प्राणियों के (जामिम्) भोग और (अजामिम्) अभोग को (आविः) प्रकट (कृणुष्व) करिये (शत्रून्) शत्रुओं का (प्र, अव, मृणीहि) अच्छे प्रकार नाश करिये और (प्रति, विध्य) वार-वार पीड़ा दीजिये ॥५॥
Connotation: - जो मनुष्य अपने से उत्कृष्ट अर्थात् श्रेष्ठों को देख के प्रसन्न होते, अनुत्कृष्ट अर्थात् दुःखियों को देख के शोक करते, भोगयुक्तों को देख के आनन्दित होते और भोगरहितों को देख के अप्रसन्न होते, वे ही राजकर्मों में स्थिर होते हैं ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे अग्ने ! त्वमस्मदूर्ध्वोऽधि भव स्थिरा दैव्यानि तनुहि यातुजूनां जामिमजामिमाविष्कृणुष्व शत्रून् प्राऽव मृणीहि प्रति विध्य ॥५॥

Word-Meaning: - (ऊर्ध्वः) उन्नतः (भव) (प्रति) (विध्य) (अधि) उपरिभावे (अस्मत्) (आविः) प्राकट्ये (कृणुष्व) (दैव्यानि) देवैर्विद्वद्भिः कृतानि कर्माणि (अग्ने) पावक इव तेजस्विन् (अव) (स्थिरा) स्थिराणि सैन्यानि (तनुहि) विस्तृणीहि (यातुजूनाम्) प्राप्तवेगानाम् (जामिम्) भोगम् (अजामिम्) अभोगम् (प्र) (मृणीहि) हिन्धि (शत्रून्) अरीन् ॥५॥
Connotation: - ये मनुष्याः स्वस्मादुत्कृष्टान् दृष्ट्वा हर्षन्ति, अनुत्कृष्टान् दृष्ट्वा शोचन्ति भोगयुक्तान् दृष्ट्वा प्रमोदन्तेऽभोगान् दृष्ट्वाऽप्रसन्नयन्ति त एव राजकर्म्मसु स्थिरा भवन्तु ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जी माणसे आपल्यापेक्षा उत्कृष्ट अर्थात् श्रेष्ठांना पाहून प्रसन्न होतात व अनुत्कृष्ट अर्थात दुःखी लोकांना पाहून शोक करतात, भोगयुक्तांना पाहून आनंदित होतात व भोगरहितांना पाहून अप्रसन्न होतात, तेच राजकर्मात स्थिर होतात. ॥ ५ ॥