Go To Mantra

उद॑ग्ने तिष्ठ॒ प्रत्या त॑नुष्व॒ न्य१॒॑मित्राँ॑ ओषतात्तिग्महेते। यो नो॒ अरा॑तिं समिधान च॒क्रे नी॒चा तं ध॑क्ष्यत॒सं न शुष्क॑म् ॥४॥

English Transliteration

ud agne tiṣṭha praty ā tanuṣva ny amitrām̐ oṣatāt tigmahete | yo no arātiṁ samidhāna cakre nīcā taṁ dhakṣy atasaṁ na śuṣkam ||

Mantra Audio
Pad Path

उत्। अ॒ग्ने॒। ति॒ष्ठ॒। प्रति॑। आ। त॒नु॒ष्व॒। नि। अ॒मित्रा॑न्। ओ॒ष॒ता॒त्। ति॒ग्म॒ऽहे॒ते॒। यः। नः॒। अरा॒॑तिम्। स॒म्ऽइ॒धा॒न॒। च॒क्रे। नी॒चा। तम्। ध॒क्षि॒। अ॒त॒सम्। न। शुष्क॑म्॥४॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:4» Mantra:4 | Ashtak:3» Adhyay:4» Varga:23» Mantra:4 | Mandal:4» Anuvak:1» Mantra:4


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (समिधान) उत्तम प्रकार प्रकाशमान और (अग्ने) अग्नि के सदृश वर्त्तमान आप (उत्, तिष्ठ) उद्युक्त हूजिये (आ, तनुष्व) अच्छे प्रकार विस्तृत हूजिये (अमित्रान्) शत्रुओं के (प्रति) प्रति (नि, ओषतात्) निरन्तर दाह देओ (तिग्महेते) हे अत्यन्त तीव्र वृद्धिवाले ! (यः) जो (नः) हम लोगों के (अरातिम्) एक शत्रु और अनेक शत्रुओं को (नीचा) नीच (चक्रे) कर चुका अर्थात् सब से बढ़ गया (तम्) उसको (शुष्कम्) गीलेपन से रहित (अतसम्) कूप के (न) सदृश जिससे आप (धक्षि) जलाते हो, इससे वह आप राज्य के योग्य हो ॥४॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। मनुष्यों को चाहिये कि आलस्य त्याग के पुरुषार्थ का विस्तार करके शत्रुओं को जलावें और अन्धकूप के सदृश कारागृह में उनका बन्धन करें और नीचता को प्राप्त करे =करायें। जो लोग ऐसा करते हैं, उनकी राजा गुरु के सदृश सेवा करे ॥४॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे समिधानाऽग्ने ! त्वमुत्तिष्ठाऽऽतनुष्वाऽमित्रान् प्रति न्योषतात्। हे तिग्महेते ! यो नोऽरातिममित्रान्नीचा चक्रे तं शुष्कमतसं न यतस्त्वं धक्षि तस्माद्राज्यमर्हसि ॥४॥

Word-Meaning: - (उत्) (अग्ने) अग्निरिव वर्त्तमान (तिष्ठ) उद्युक्तो भव (प्रति) (आ) (तनुष्व) विस्तृणीहि (नि) (अमित्रान्) शत्रून् (ओषतात्) दह (तिग्महेते) तिग्मा तीव्रा हेतिर्वृद्धिर्यस्य तत्सम्बुद्धौ (यः) (नः) (अरातिम्) शत्रुम् (समिधान) सम्यक् प्रकाशमान (चक्रे) (नीचा) नीचान् (तम्) (धक्षि) दहसि (अतसम्) कूपम् (न) इव (शुष्कम्) जलार्द्रभावरहितम् ॥४॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। मनुष्यैरालस्यं विहाय पुरुषार्थं विसृत्य शत्रवो दग्धव्या अन्धकूप इव कारागृहे बन्धनीयाः। नीचतां प्रापणीयाः। य एवं विदधति तान् राजा गुरुवत्सेवेत ॥४॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. माणसांनी आळसाचा त्याग करून पुरुषार्थ वाढवून शत्रूंचे दहन करावे व अंध कूपाप्रमाणे असलेल्या कारागृहात त्यांना बंदिस्त करावे व नीच समजून वर्तन करावे. जे लोक असे करतात त्यांची राजाने गुरुप्रमाणे सेवा करावी ॥ ४ ॥