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अ॒या ते॑ अग्ने स॒मिधा॑ विधेम॒ प्रति॒ स्तोमं॑ श॒स्यमा॑नं गृभाय। दहा॒शसो॑ र॒क्षसः॑ पा॒ह्य१॒॑स्मान्द्रु॒हो नि॒दो मि॑त्रमहो अव॒द्यात् ॥१५॥

English Transliteration

ayā te agne samidhā vidhema prati stomaṁ śasyamānaṁ gṛbhāya | dahāśaso rakṣasaḥ pāhy asmān druho nido mitramaho avadyāt ||

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Pad Path

अ॒या। ते॒। अ॒ग्ने॒। स॒म्ऽइधा॑। वि॒धे॒म॒। प्रति॑। स्तोम॑म्। श॒स्यमा॑नम्। गृ॒भा॒य॒। दह॑। अ॒शसः॑। र॒क्षसः॑। पा॒हि। अ॒स्मान्। द्रु॒हः। नि॒दः। मि॒त्र॒ऽम॒हः॒। अ॒व॒द्यात्॥१५॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:4» Mantra:15 | Ashtak:3» Adhyay:4» Varga:25» Mantra:5 | Mandal:4» Anuvak:1» Mantra:15


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (अग्ने) राजन् ! हम लोग (ते) आपकी (अया) इस प्राप्त हुई (समिधा) उत्तम प्रकार प्रदीप्त नीति के साथ जिस (शस्यमानम्) प्रशंसा करने योग्य प्रशंसित होते हुए को (स्तोमम्) प्रशंसनीय (विधेम) करें उसको आप (प्रति, गृभाय) ग्रहण कीजिये (अशसः) निन्दक (रक्षसः) दुष्टाचरणों को (दह) भस्म कीजिये और (द्रुहः) द्रोह से युक्त (निदः) निन्दा करनेवाले का (अवद्यात्) अधर्माचरण से (मित्रमहः) मित्रों का सत्कार करनेवाले (अस्मान्) हम लोगों का (पाहि) पालन कीजिये ॥१५॥
Connotation: - जो राजा और मन्त्री जन परस्पर सम्मत हुए नम्रता से राज्य की शिक्षा करते हैं तो द्वेष निन्दा और अधर्माचरण से अलग होकर उत्तम शिष्टाचार करते हुए दशों दिशाओं में यश को फैलाते हैं ॥१५॥ इस सूक्त में राजा और प्रजा के कृत्य वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥१५॥ यह चतुर्थ मण्डल में चतुर्थ सूक्त और तीसरे अष्टक में पच्चीसवाँ वर्ग और चौथा अध्याय समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे अग्ने ! वयं तेऽया समिधा यं शस्यमानं स्तोमं विधेम तं त्वं प्रति गृभाय। अशसो रक्षसो दह द्रुहो निदोऽवद्याच्च मित्रमहोऽस्माञ्च पाहि ॥१५॥

Word-Meaning: - (अया) अनया प्राप्तया (ते) तव (अग्ने) राजन् (समिधा) सम्यक् प्रदीप्तया नीत्या सह (विधेम) कुर्य्याम (प्रति) (स्तोमम्) प्रशंसनीयम् (शस्यमानम्) प्रशंसितव्यम् (गृभाय) गृहाण (दह) (अशसः) अस्तवकान् (रक्षसः) दुष्टाचारान् (पाहि) (अस्मान्) (द्रुहः) द्रोहयुक्ताः (निदः) निन्दकात् (मित्रमहः) ये मित्राणि महन्ति सत्कुर्वन्ति (अवद्यात्) अधर्माचरणात् ॥१५॥
Connotation: - यदि राजाऽमात्याः सम्मतः सन्तो विनयेन राज्यं शासति तर्हि द्रोहनिन्दाऽधर्माचरणात् पृथग्भूत्वा शिष्टाचाराः सन्तो दशसु दिक्षु कीर्तिं प्रसारयन्तीति ॥१५॥ अत्र राजप्रजाकृत्यवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥१५॥ इति चतुर्थे मण्डले चतुर्थं सूक्तं तृतीयाष्टके पञ्चविंशो वर्गश्चतुर्थोऽध्यायश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे राजे व मंत्री परस्पर संमतीने नम्र बनून राज्य शासन चालवितात ते द्वेष, निंदा व अधर्माचरण यापासून पृथक होऊन उत्तम शिष्टाचारयुक्त बनून दशदिशांमध्ये यश पसरवितात. ॥ १५ ॥