Go To Mantra

ये पा॒यवो॑ मामते॒यं ते॑ अग्ने॒ पश्य॑न्तो अ॒न्धं दु॑रि॒तादर॑क्षन्। र॒रक्ष॒ तान्त्सु॒कृतो॑ वि॒श्ववे॑दा॒ दिप्स॑न्त॒ इद्रि॒पवो॒ नाह॑ देभुः ॥१३॥

English Transliteration

ye pāyavo māmateyaṁ te agne paśyanto andhaṁ duritād arakṣan | rarakṣa tān sukṛto viśvavedā dipsanta id ripavo nāha debhuḥ ||

Mantra Audio
Pad Path

ये। पा॒यवः॑। मा॒म॒ते॒यम्। ते। अ॒ग्ने॒। पश्य॑न्तः। अ॒न्धम्। दुः॒ऽइ॒तात्। अर॑क्षन्। र॒रक्ष॑। तान्। सु॒ऽकृतः॑। वि॒श्वऽवे॑दाः। दिप्स॑न्तः। इत्। रि॒पवः॑। न। अह॑। दे॒भुः॒॥१३॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:4» Mantra:13 | Ashtak:3» Adhyay:4» Varga:25» Mantra:3 | Mandal:4» Anuvak:1» Mantra:13


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर राजविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (अग्ने) अग्नि के सदृश राजन् ! (ये) जो (पायवः) रक्षा करनेवाले (ते) आपके (मामतेयम्) ममता सम्बन्धी कार्य को (पश्यन्तः) देखते हुए (दुरितात्) दुष्ट आचरण वा दुःख से (अन्धम्) नेत्ररहित को जैसे वैसे हम लोगों की (अरक्षन्) रक्षा करते हैं (तान्) उन (सुकृतः) उत्तम कर्म करनेवालों का (विश्ववेदाः) सम्पूर्ण विषय जाननेवाले होते हुए आप (ररक्ष) पालन करो, जिससे (इत्) ही (दिप्सन्तः) पाखण्ड की इच्छा करते हुए (रिपवः) शत्रु लोग हम लोगों के (न, अह) निग्रह करने में न (देभुः) दम्भ करें ॥१३॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे राजन् ! जो लोग अपने के सदृश अन्य जनों और आपके पदार्थ को जानते हैं और अपने आत्मा के सदृश अन्यों की रक्षा करते हैं, वे ही यथार्थवक्ता आपके सेवक हों, जिससे कि शत्रुओं का बल नष्ट होवे ॥१३॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुना राजविषयमाह

Anvay:

हे अग्ने ! ये पायवस्ते मामतेयं पश्यन्तो दुरितादन्धमिवाऽस्मानरक्षंस्तान् सुकृतो विश्ववेदाः संस्त्वं ररक्ष येनेदेव दिप्सन्तो रिपवोऽस्मान्नाऽह देभुः ॥१३॥

Word-Meaning: - (ये) (पायवः) रक्षकाः (मामतेयम्) मम भावो ममता तस्या इदम् (ते) तव (अग्ने) पावकवद्राजन् (पश्यन्तः) प्रेक्षमाणाः (अन्धम्) नेत्ररहितमिव (दुरितात्) दुष्टाचाराद् दुःखाद्वा (अरक्षन्) रक्षन्ति (ररक्ष) पालय (तान्) (सुकृतः) उत्तमकर्मकारिणः (विश्ववेदाः) समग्रवित् (दिप्सन्तः) दम्भमिच्छन्तः (इत्) एव (रिपवः) शत्रवः (न) (अह) विनिग्रहे (देभुः) दभ्नुयुः ॥१३॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे राजन् ! ये स्वकीयमिवाऽन्येषाम्भवतश्च पदार्थं जानन्ति। आत्मानमिवान्यान् रक्षन्ति त एवाऽऽप्ता तव भृत्याः सन्तु येन शत्रूणां बलं विनश्येत् ॥१३॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे राजा ! जे लोक आपल्या प्रमाणेच इतरांच्या पदार्थांना जाणतात व आपल्या आत्म्याप्रमाणेच इतरांचे रक्षण करतात तेच विद्वान तुझे सेवक व्हावेत. ज्यामुळे शत्रूंचे बल नष्ट होईल. ॥ १३ ॥