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द॒धि॒क्राव्णो॑ अकारिषं जि॒ष्णोरश्व॑स्य वा॒जिनः॑। सु॒र॒भि नो॒ मुखा॑ कर॒त्प्र ण॒ आयूं॑षि तारिषत् ॥६॥

English Transliteration

dadhikrāvṇo akāriṣaṁ jiṣṇor aśvasya vājinaḥ | surabhi no mukhā karat pra ṇa āyūṁṣi tāriṣat ||

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Pad Path

द॒धि॒ऽक्राव्णः॑। अ॒का॒रि॒ष॒म्। जि॒ष्णोः। अश्व॑स्य। वा॒जिनः॑। सु॒र॒भि। नः॒। मुखा॑। क॒र॒त्। प्र। नः॒। आयूं॑षि। ता॒रि॒ष॒त् ॥६॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:39» Mantra:6 | Ashtak:3» Adhyay:7» Varga:13» Mantra:6 | Mandal:4» Anuvak:4» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (नः) हम लोगों के (मुखा) मुख के सहचरित श्रवण आदि इन्द्रियों के प्रति (सुरभि) सुगन्ध आदि गुणों से युक्त द्रव्य को (करत्) करे और (नः) हम लोगों की (आयूंषि) अवस्थाओं को (प्र, तारिषत्) बढ़ावे उस (दधिक्राव्णः) धर्म को धारण करने वा चलानेवाले (अश्वस्य) सम्पूर्ण उत्तम गुणों में व्याप्त (वाजिनः) विज्ञानवाले (जिष्णोः) जयशील राजा की जिस प्रकार मैं आज्ञा को (अकारिषम्) करूँ, वैसे ही आप लोग भी करो ॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जो राजा सुगन्ध आदि से युक्त घृत आदि के होम से वायु वृष्टि जलादि को पवित्र कर सब के रोगों का निवारण करके अवस्थाओं को बढ़ाता है और प्रयत्न से सब प्रजाओं का पुत्र के सदृश पालन करता है, वह हम लोगों को पिता के सदृश सत्कार करने योग्य है ॥६॥ इस सूक्त में राजा और प्रजा के कृत्य का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछिले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति है, यह जानना चाहिये ॥६॥ यह उनतालीसवाँ सूक्त और तेरहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यो नो मुखा सुरभि करन्न आयूंषि प्रतारिषत्तस्य दधिक्राव्णोऽश्वस्य वाजिनो जिष्णो राज्ञो यथाहमाज्ञामकारिषं तथैव यूयमपि कुरुत ॥६॥

Word-Meaning: - (दधिक्राव्णः) धर्मधरस्य क्रमयितुर्वा (अकारिषम्) कुर्य्याम् (जिष्णोः) जयशीलस्य (अश्वस्य) सकलशुभगुणव्याप्तस्य (वाजिनः) विज्ञानवतः (सुरभि) सुगन्धादिगुणयुक्तं द्रव्यम् (नः) अस्माकम् (मुखा) मुखेन सहचरितानि श्रोत्रादीनीन्द्रियाणि प्रति (करत्) कुर्य्यात् (प्र) (नः) अस्माकम् (आयूंषि) (तारिषत्) वर्द्धयेत् ॥६॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यो राजा सुगन्धादियुक्तघृतादिहोमेन वायुवृष्टिजलादिं शोधयित्वा सर्वेषां रोगान्निवार्य्याऽऽयूंषि वर्धयति प्रयत्नेन सर्वाः प्रजाः पुत्रवत्पालयति च सोऽस्माभिः पितृवत्सत्कर्त्तव्योऽस्तीति ॥६॥ अत्र राजप्रजाकृत्यवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेद्यम् ॥६॥ इत्येकोनचत्वारिंशत्तमं सूक्तं त्रयोदशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जो राजा सुगंधाने युक्त घृत इत्यादींचा होम करून वायू, वृष्टी, जल इत्यादींना पवित्र करून सर्वांच्या रोगांचे निवारण करून आयुष्य वाढवितो व प्रयत्नपूर्वक सर्व प्रजेचे पुत्राप्रमाणे पालन करतो त्याचा आम्ही पित्याप्रमाणे सत्कार करावा. ॥ ६ ॥