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द॒धि॒क्राव्ण॑ इ॒ष ऊ॒र्जो म॒हो यदम॑न्महि म॒रुतां॒ नाम॑ भ॒द्रम्। स्व॒स्तये॒ वरु॑णं मि॒त्रम॒ग्निं हवा॑मह॒ इन्द्रं॒ वज्र॑बाहुम् ॥४॥

English Transliteration

dadhikrāvṇa iṣa ūrjo maho yad amanmahi marutāṁ nāma bhadram | svastaye varuṇam mitram agniṁ havāmaha indraṁ vajrabāhum ||

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Pad Path

द॒धि॒ऽक्राव्णः॑। इ॒षः। ऊ॒र्जः। म॒हः। यत्। अम॑न्महि। म॒रुता॑म्। नाम॑। भ॒द्रम्। स्व॒स्तये॑। वरु॑णम्। मि॒त्रम्। अ॒ग्निम्। हवा॑महे। इन्द्र॑म्। वज्र॑ऽबाहुम् ॥४॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:39» Mantra:4 | Ashtak:3» Adhyay:7» Varga:13» Mantra:4 | Mandal:4» Anuvak:4» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! हम लोग (स्वस्तये) सुख के लिये (यत्) जिस (महः) बड़ी (दधिक्राव्णः) धारण करनेवालों के हिलानेवाले (इषः) अन्न आदि की (ऊर्जः) पराक्रम की (मरुताम्) और मनुष्यों के (भद्रम्) कल्याण करनेवाली (नाम) संज्ञा को (अमन्महि) जानें। और (वरुणम्) जल के सदृश शान्ति आदि गुणों से युक्त (मित्रम्) प्राणों के सदृश सब के प्रिय (अग्निम्) बिजुली के सदृश सम्पूर्ण गुणों के प्रकाश करनेवाले (वज्रबाहुम्) शस्त्र और अस्त्रों को सेवनेवाले बाहुयुक्त (इन्द्रम्) अत्यन्त ऐश्वर्य्यवान् की (हवामहे) प्रशंसा करें वा ग्रहण करें, उस संज्ञा और ऐश्वर्य्यवान् को आप लोग जान के अन्यों के प्रति प्रशंसा करो ॥४॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो अन्न आदि संस्कार और भोजन के समय की रीतियों को जान और स्वयं आचरण करके अन्यों को उपदेश देते और राजा के साथ विरोध नहीं करके प्रजा के साथ मित्र के सदृश आचरण करते हैं, वे ही प्रशंसा करने योग्य होते हैं ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! वयं स्वस्तये यन्महो दधिक्राव्ण इष ऊर्जो मरुतां च भद्रं नामाऽमन्महि। वरुणं मित्रमग्निं वज्रबाहुमिन्द्रं हवामहे तत्तं च यूयं ज्ञात्वाऽन्यान् प्रति प्रशंसत ॥४॥

Word-Meaning: - (दधिक्राव्णः) धर्त्तॄणां प्रचालकस्य (इषः) अन्नादेः (ऊर्जः) पराक्रमस्य (महः) महत् (यत्) (अमन्महि) विजानीयाम (मरुताम्) मनुष्याणाम् (नाम) संज्ञाम् (भद्रम्) कल्याणकरम् (स्वस्तये) सुखाय (वरुणम्) जलमिव शान्त्यादिगुणम् (मित्रम्) प्राणवत्सर्वप्रियम् (अग्निम्) विद्युतमिव सकलगुणप्रकाशकम् (हवामहे) प्रशंसेमाऽऽदद्याम वा (इन्द्रम्) परमैश्वर्य्यवन्तम् (वज्रबाहुम्) शस्त्रास्त्रभुजम् ॥४॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। येऽन्नादिसंस्कारभोजनसमयरीतीर्ज्ञात्वा स्वयमाचर्य्यान्यानुपदिशन्ति राजविरोधं कृत्वा प्रजया मित्रवदाचरन्ति त एव प्रशंसनीया भवन्ति ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे अन्नावरील संस्कार व भोजनाच्या वेळेची पद्धत जाणून स्वतः आचरण करून इतरांना उपदेश करतात व राजाबरोबर विरोध न करता प्रजेबरोबर मित्राप्रमाणे वागतात तेच प्रशंसा करण्यायोग्य असतात. ॥ ४ ॥