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उ॒त स्मा॑सु प्रथ॒मः स॑रि॒ष्यन्नि वे॑वेति॒ श्रेणि॑भी॒ रथा॑नाम्। स्रजं॑ कृण्वा॒नो जन्यो॒ न शुभ्वा॑ रे॒णुं रेरि॑हत्कि॒रणं॑ दद॒श्वान् ॥६॥

English Transliteration

uta smāsu prathamaḥ sariṣyan ni veveti śreṇibhī rathānām | srajaṁ kṛṇvāno janyo na śubhvā reṇuṁ rerihat kiraṇaṁ dadaśvān ||

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Pad Path

उ॒त। स्म॒। आ॒सु॒। प्र॒थ॒मः। स॒रि॒ष्यन्। नि। वे॒वे॒ति॒। श्रेणि॑ऽभिः। रथा॑नाम्। स्रज॑म्। कृ॒ण्वा॒नः। जन्यः॑। न। शुभ्वा॑। रे॒णुम्। रेरि॑हत्। कि॒रण॑म्। द॒द॒श्वान् ॥६॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:38» Mantra:6 | Ashtak:3» Adhyay:7» Varga:12» Mantra:1 | Mandal:4» Anuvak:4» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (आसु) इन सेनाओं में (रथानाम्) वाहनों की (श्रेणिभिः) पङ्क्तियों से (स्रजम्) माला के सदृश सेना को (कृण्वानः) करता और (प्रथमः) प्रथम (सरिष्यन्) चलनेवाला होता हुआ (नि, वेवेति) जाता है (उत) और (शुभ्वा) उत्तम प्रकार शोभित (जन्यः) उत्पन्न होनेवाले के (न) सदृश और (किरणम्) ज्योति को (ददश्वान्) देनेवाले वायु के सदृश (रेणुम्) धूलि को (रेरिहत्) निरन्तर उड़ाता है (स्म) वही राजा सब ओर से वृद्धि को प्राप्त होता है ॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमावाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जो न्याय से प्रजाओं का पालन करता हुआ सेनाओं में अग्रगामी, धनुर्वेद का जाननेवाला, विजयी, चतुर, विद्वान्, धार्मिक और उत्तम सहाययुक्त राजा होवे, वही यशस्वी होकर महाराज होवे ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! य आसु रथानां श्रेणिभिः स्रजं कृण्वानः प्रथमः सरिष्यन् नि वेवेत्युत शुभ्वा जन्यो न किरणं ददश्वान् रेणुं रेरिहत् स स्मैव राजा सर्वतो वर्धते ॥६॥

Word-Meaning: - (उत) अपि (स्म) (आसु) सेनासु (प्रथमः) आदिमः (सरिष्यन्) गमिष्यन् (नि) (वेवेति) गच्छति (श्रेणिभिः) पङ्क्तिभिः (रथानाम्) यानानाम् (स्रजम्) मालामिव सेनाम् (कृण्वानः) कुर्वन् (जन्यः) यो जायते (न) इव (शुभ्वा) सुशोभमानः (रेणुम्) (रेरिहत्) (किरणम्) ज्योतिः (ददश्वान्) दत्तवान् वायुरिव ॥६॥
Connotation: - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। यो न्यायेन प्रजाः पालयन्त्सेनाष्वग्रगामी धनुर्वेदविद्विजयी दक्षो विद्वान् धार्मिकः सुसहायो राजा भवेत् स एव कीर्त्तिमान् भूत्वा महाराजः स्यात् ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमावाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जो न्यायाने प्रजेचे पालन करतो, सेनेचा प्रमुख, धनुर्वेद जाणणारा, विजयी चतुर, विद्वान, धार्मिक व उत्तम सहायक राजा असतो तोच कीर्तिमान होऊन महाराजा बनतो. ॥ ६ ॥