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तं नो॑ वाजा ऋभुक्षण॒ इन्द्र॒ नास॑त्या र॒यिम्। समश्वं॑ चर्ष॒णिभ्य॒ आ पु॒रु श॑स्त म॒घत्त॑ये ॥८॥

English Transliteration

taṁ no vājā ṛbhukṣaṇa indra nāsatyā rayim | sam aśvaṁ carṣaṇibhya ā puru śasta maghattaye ||

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Pad Path

तम्। नः॒। वा॒जाः॒। ऋ॒भु॒क्ष॒णः॒। इन्द्र॑। नास॑त्या। र॒यिम्। सम्। अश्व॑म्। च॒र्ष॒णिऽभ्यः॑। आ। पु॒रु। श॒स्त॒। म॒घत्त॑ये ॥८॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:37» Mantra:8 | Ashtak:3» Adhyay:7» Varga:10» Mantra:3 | Mandal:4» Anuvak:4» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (वाजाः) देनेवाले ! (ऋभुक्षणः) बड़े ! आप लोग जैसे (नासत्या) असत्याचार से रहित सभा और न्याय के ईश वैसे (नः) हम (चर्षणिभ्यः) मनुष्यों के अर्थ (मघत्तये) श्रेष्ठ धन की प्राप्ति के लिये (तम्) उस (अश्वम्) बड़े (रयिम्) धन को (पुरु) बहुत (सम्) उत्तम प्रकार (आ) ग्रहण करिये। और हे (इन्द्र) अत्यन्त ऐश्वर्य्य से युक्त ! आप इन लोगों की (शस्त) प्रशंसा कीजिये ॥८॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को चाहिये कि राजा और राजपुरुषों से धन की उन्नति सदा करें, जिससे बहुत प्रकार का सुख होवे ॥८॥ इस सूक्त में विद्वानों के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछिले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥८॥ यह सैंतीसवाँ सूक्त और दशवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे वाजा ऋभुक्षणो ! यूयं यथा नासत्या तथा नश्चर्षणिभ्यो मघत्तये तमश्वं रयिं पुरु समादत्त। हे इन्द्र ! त्वमेताञ्छस्त ॥८॥

Word-Meaning: - (तम्) (नः) अस्मभ्यम् (वाजाः) दातारः (ऋभुक्षणः) महान्तः (इन्द्र) परमैश्वर्य्ययुक्त (नासत्या) अविद्यमानासत्याचारौ सभान्यायेशौ (रयिम्) धनम् (सम्) (अश्वम्) महान्तम् (चर्षणिभ्यः) मनुष्येभ्यः (आ) समन्तात् (पुरु) बहु (शस्त) प्रशंसत (मघत्तये) पूजितधनप्राप्तये ॥८॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यै राज्ञो राजपुरुषेभ्यश्च धनोन्नतिः सदा कार्या येन बहुविधं सुखं भवेदिति ॥८॥ अत्र विद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥८॥ इति सप्तत्रिंशत्तमं सूक्तं दशमो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसांनी राजा व राजपुरुषाकडून धन वाढवून घ्यावे. ज्यामुळे पुष्कळ सुख मिळेल. ॥ ८ ॥