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उप॑ नो वाजा अध्व॒रमृ॑भुक्षा॒ देवा॑ या॒त प॒थिभि॑र्देव॒यानैः॑। यथा॑ य॒ज्ञं मनु॑षो वि॒क्ष्वा॒३॒॑सु द॑धि॒ध्वे र॑ण्वाः सु॒दिने॒ष्वह्ना॑म् ॥१॥

English Transliteration

upa no vājā adhvaram ṛbhukṣā devā yāta pathibhir devayānaiḥ | yathā yajñam manuṣo vikṣv āsu dadhidhve raṇvāḥ sudineṣv ahnām ||

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Pad Path

उप॑। नः॒। वा॒जाः॒। अ॒ध्व॒रम्। ऋ॒भु॒क्षाः॒। देवाः॑। या॒त। प॒थिऽभिः॑। दे॒व॒ऽयानैः॑। यथा॑। य॒ज्ञम्। मनु॑षः। वि॒क्षु। आ॒सु। द॒धि॒ध्वे। र॒ण्वाः॒। सु॒ऽदिने॑षु। अह्ना॑म् ॥१॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:37» Mantra:1 | Ashtak:3» Adhyay:7» Varga:9» Mantra:1 | Mandal:4» Anuvak:4» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब आठ ऋचावाले सैंतीसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में आप्त के विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (ऋभुक्षाः) बड़े (वाजाः) विज्ञानवाले (देवाः) विद्वानो ! आप लोग (यथा) जैसे (रण्वाः) सुन्दर (मनुषः) विचार करनेवाले (अह्नाम्) दिनों के मध्य में (सुदिनेषु) सुख से वर्त्तमान दिनों में और (आसु) इन प्रत्यक्ष वर्त्तमान (विक्षु) प्रजाओं में (यज्ञम्) वैर आदि दोषरहित व्यवहार को धारण करते हैं, वैसे ही आप लोग इसको (दधिध्वे) धारण कीजिये वैसे (पथिभिः) मार्गों (देवयानैः) विद्वान् लोग जिसमें जाएँ उनसे (नः) हम लोगों के (अध्वरम्) अहिंसामय यज्ञ को (उप, यात) प्राप्त हूजिये ॥१॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो जन धार्मिक विद्वानों के मार्ग अर्थात् मर्यादा से चलते हैं, वे प्रजा के हित करने में समर्थ होते हैं ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथाप्तविषयमाह ॥

Anvay:

हे ऋभुक्षा वाजा देवा ! भवन्तो यथा रण्वा मनुषोऽह्नां सुदिनेष्वासु विक्षु यज्ञं दधति तथैव यूयमेतं दधिध्वे तथा पथिभिर्देवयानैर्नोऽध्वरमुपयात ॥१॥

Word-Meaning: - (उप) (नः) अस्माकम् (वाजाः) विज्ञानवन्तः (अध्वरम्) अहिंसामयं यज्ञम् (ऋभुक्षाः) महान्तः (देवाः) (यात) प्राप्नुत (पथिभिः) मार्गैः (देवयानैः) देवा विद्वांसो यान्ति येषु तैः (यथा) (यज्ञम्) वैरादिदोषरहितं व्यवहारम् (मनुषः) मननशीलाः (विक्षु) प्रजासु (आसु) प्रत्यक्षवर्त्तमानासु (दधिध्वे) धरध्वम् (रण्वाः) रमणीयाः (सुदिनेषु) सुखेन वर्त्तमानेष्वहःसु (अह्नाम्) दिनानां मध्ये ॥१॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये धार्मिकाणां विदुषां मार्गेण गच्छन्ति ते प्रजाहितकरणे समर्था जायन्ते ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात विद्वानाच्या सुखाचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे लोक धार्मिक विद्वानांच्या मार्गाने अर्थात मर्यादेने चालतात ते प्रजेचे हित करण्यात समर्थ असतात. ॥ १ ॥