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ऋ॒भु॒तो र॒यिः प्र॑थ॒मश्र॑वस्तमो॒ वाज॑श्रुतासो॒ यमजी॑जन॒न्नरः॑। वि॒भ्व॒त॒ष्टो वि॒दथे॑षु प्र॒वाच्यो॒ यं दे॑वा॒सोऽव॑था॒ स विच॑र्षणिः ॥५॥

English Transliteration

ṛbhuto rayiḥ prathamaśravastamo vājaśrutāso yam ajījanan naraḥ | vibhvataṣṭo vidatheṣu pravācyo yaṁ devāso vathā sa vicarṣaṇiḥ ||

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Pad Path

ऋ॒भु॒तः। र॒यिः। प्र॒थ॒मश्र॑वःऽतमः। वाज॑ऽश्रुतासः। यम्। अजी॑जनन्। नरः॑। वि॒भ्व॒ऽत॒ष्टः। वि॒दथे॑षु। प्र॒ऽवाच्यः॑। यम्। दे॒वा॒सः॒। अव॑थ। सः। विऽच॑र्षणिः ॥५॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:36» Mantra:5 | Ashtak:3» Adhyay:7» Varga:7» Mantra:5 | Mandal:4» Anuvak:4» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (देवासः) विद्वानो ! जो (वाजश्रुतासः) विज्ञान के सुननेवाले (नरः) नायकजन (यम्) जिसको (अजीजनन्) उत्पन्न करते हैं (सः) वह (विभ्वतष्टः) व्यापक पदार्थों में नहीं पण्डित अर्थात् उनको नहीं जाननेवाला (विदथेषु) जनाने योग्य व्यवहारों में (प्रवाच्यः) कहने के योग्य होवे इससे (ऋभुतः) बुद्धिमानों के समीप से (प्रथमश्रवस्तमः) अत्यन्त प्रथम श्रवण वा अन्न जिससे वह (रयिः) धन प्राप्त होवे और (यम्) जिसकी आप लोग (अवथ) रक्षा करते हो वह (विचर्षणिः) सम्पूर्ण देखने योग्य पदार्थों को देखनेवाला मनुष्य होवे ॥५॥
Connotation: - वे ही विद्वान् उत्तम हैं कि जो विद्यार्थियों को विद्वान् करते हैं, उन्हीं को पढ़ाना और उपदेश देना चाहिये जो पदार्थविद्या से रहित होवें, वे ही सुखी होते हैं, जो विद्या और धन को प्राप्त होकर धर्मात्मा होवें ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे देवासो ! ये वाजश्रुतासो नरो यमजीजनन्त्स विभ्वतष्टो विदथेषु प्रवाच्यः स्यात्। तेनर्भुतः प्रथमश्रवस्तमो रयिः प्राप्येत तं यूयमवथ स विचर्षणिर्भवेत् ॥५॥

Word-Meaning: - (ऋभुतः) ऋभूणां सकाशात् (रयिः) श्रीः (प्रथमश्रवस्तमः) अतिशयेन प्रथमः श्रवः श्रवणमन्नं वा यस्मात् सः (वाजश्रुतासः) वाजं विज्ञानं श्रुतं यैस्ते (यम्) (अजीजनन्) जनयन्ति (नरः) नायकाः (विभ्वतष्टः) यो विभुषु पदार्थेष्वतष्टोऽविचक्षणः सः (विदथेषु) विज्ञापनीयेषु व्यवहारेषु (प्रवाच्यः) प्रवक्तुं योग्यः (यम्) (देवासः) विद्वांसः (अवथ) रक्षथ (सः) (विचर्षणिः) सर्वद्रष्टव्यद्रष्टा मनुष्यः ॥५॥
Connotation: - त एव विद्वांस उत्तमा ये विद्यार्थिनो विदुषः कुर्वन्ति। त एवाध्यापनीया उपदेष्टव्या ये पदार्थविद्याविरहाः स्युस्त एव सुखिनो भवन्ति ये विद्याश्रियौ प्राप्य धर्मात्मानो भवेयुः ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे विद्यार्थ्यांना विद्वान करतात. तेच विद्वान उत्तम असतात. जे पदार्थविद्या जाणत नाहीत त्यांनाच अध्यापन व उपदेश करावा. जे विद्या व धन प्राप्त करून धर्मात्मा बनतात तेच सुखी असतात. ॥ ५ ॥