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ये अ॒श्विना॒ ये पि॒तरा॒ य ऊ॒ती धे॒नुं त॑त॒क्षुर्ऋ॒भवो॒ ये अश्वा॑। ये अंस॑त्रा॒ य ऋध॒ग्रोद॑सी॒ ये विभ्वो॒ नरः॑ स्वप॒त्यानि॑ च॒क्रुः ॥९॥

English Transliteration

ye aśvinā ye pitarā ya ūtī dhenuṁ tatakṣur ṛbhavo ye aśvā | ye aṁsatrā ya ṛdhag rodasī ye vibhvo naraḥ svapatyāni cakruḥ ||

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Pad Path

ये। अ॒श्विना॑। ये पि॒तरा॑। ये। ऊ॒ती। धे॒नुम्। त॒त॒क्षुः। ऋ॒भवः॑। ये। अश्वा॑। ये। अंस॑त्रा। ये। ऋध॑क्। रोद॑सी॒ इति॑। ये। विऽभ्वः॑। नरः॑। सु॒ऽअ॒॒प॒त्यानि॑। च॒क्रुः ॥९॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:34» Mantra:9 | Ashtak:3» Adhyay:7» Varga:4» Mantra:4 | Mandal:4» Anuvak:4» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - (ये) जो (ऋभवः) बुद्धिमान् (अश्विना) सम्पूर्ण विद्याओं में व्याप्त (ये) जो (पितरा) सब प्रकार से पालन करनेवाले और (ये) जो (अश्वा) वेग से मार्ग के बीच व्याप्त होनेवाले दो पदार्थ (ये) (अंसत्रा) गमन आदि के रक्षक और (ये) जो (रोदसी) अन्तरिक्ष और पृथिवी और (ये) जो (विभ्वः) सम्पूर्ण विद्याओं में व्यापक (नरः) नायक मनुष्य और (ये) जो बुद्धिमान् (ऊती) रक्षण आदि से (धेनुम्) विद्यासहित वाणी को (ततक्षुः) सूक्ष्म और विस्तारयुक्त करते हैं और (स्वपत्यानि) उत्तम शिक्षा से सन्तानों को श्रेष्ठ (ऋधक्) यथार्थ भाव से (चक्रुः) करें, वे बड़े भाग्यशाली होवें ॥९॥
Connotation: - जो मनुष्य विद्या और सत्पुरुषों का संग, वृद्धों का सेवन और अपने समीप प्राप्तों की रक्षा करके अपने सन्तानों को श्रेष्ठ करें, वे विस्तारयुक्त सुख को प्राप्त होवें ॥९॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

य ऋभवोऽश्विना ये पितरा येऽश्वा येंऽसत्रा ये रोदसी ये च विभ्वो नरो य ऋभव ऊती धेनुं ततक्षुः स्वपत्यानि चर्धक् चक्रुस्ते महाभाग्यशालिनः स्युः ॥९॥

Word-Meaning: - (ये) (अश्विना) सकलविद्याव्याप्तौ (ये) (पितरा) सर्वथा पालकौ (ये) (ऊती) रक्षणाद्येन (धेनुम्) विद्यासहितां वाचम् (ततक्षुः) सूक्ष्मां विस्तृताञ्च कुर्वन्ति (ऋभवः) मेधाविनः (ये) (अश्वा) वेगेनाऽध्वनि व्याप्तिशीलौ युग्मौ पदार्थौ (ये) (अंसत्रा) अंसान् गत्यादीन् रक्षतस्तौ (ये) (ऋधक्) यथार्थतया (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (ये) (विभ्वः) सकलविद्यासु व्यापकाः (नरः) नेतारो मनुष्याः (स्वपत्यानि) सुष्ठु शिक्षयोत्तमानि चापत्यानि च तानि (चक्रुः) कुर्य्युः ॥९॥
Connotation: - ये मनुष्या विद्यां सत्पुरुषसङ्गं वृद्धसेवनं प्राप्तरक्षां च कृत्वा स्वसन्तानाञ्छ्रेष्ठान् कुर्य्युस्ते विस्तीर्णसुखप्राप्ता भवेयुः ॥९॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जी माणसे विद्या व सत्पुरुषांचा संग, वृद्धांचे सेवन व आपल्याजवळ असलेल्याचे रक्षण करून आपल्या संतानांना श्रेष्ठ करतात ती खूप सुख भोगतात. ॥ ९ ॥