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द्वाद॑श॒ द्यून्यदगो॑ह्यस्याति॒थ्ये रण॑न्नृ॒भवः॑ स॒सन्तः॑। सु॒क्षेत्रा॑कृण्व॒न्नन॑यन्त॒ सिन्धू॒न्धन्वाति॑ष्ठि॒न्नोष॑धीर्नि॒म्नमापः॑ ॥७॥

English Transliteration

dvādaśa dyūn yad agohyasyātithye raṇann ṛbhavaḥ sasantaḥ | sukṣetrākṛṇvann anayanta sindhūn dhanvātiṣṭhann oṣadhīr nimnam āpaḥ ||

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Pad Path

द्वाद॑श। द्यून्। यत्। अगो॑ह्यस्य। आ॒ति॒थ्ये। रण॑न्। ऋ॒भवः॑। स॒सन्तः॑। सु॒ऽक्षेत्रा॑। अ॒कृ॒ण्व॒न्। अन॑यन्त। सिन्धू॑न्। धन्व॑। आ। अ॒ति॒ष्ठ॒न्। ओष॑धीः। नि॒म्नम्। आपः॑ ॥७॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:33» Mantra:7 | Ashtak:3» Adhyay:7» Varga:2» Mantra:2 | Mandal:4» Anuvak:4» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वान् के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - (यत्) जो (ससन्तः) सोते हुए उठकर (ऋभवः) बुद्धिमान् जन जिस प्रकार से (आपः) जलों और (सिन्धून्) नदी वा समुद्रों (धन्व) तथा अन्तरिक्ष और (ओषधीः) ओषधियों के (निम्नम्) नीचे (आ, अतिष्ठन्) स्थित होते हैं, वैसे (अगोह्यस्य) अगुप्त के (आतिथ्ये) आतिथ्य में अर्थात् अतिथिसम्बन्धी सत्कार में (द्वादश) बारह (द्यून्) दिन (रणन्) उपदेश देवें तथा (सुक्षेत्रा) सुन्दर स्थानों को (अकृण्वन्) करते और सुखों को (अनयन्त) प्राप्त होते हैं, वे मङ्गल देनेवाले हैं ॥७॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। विद्वान् जन जैसे सोते हुओं को चेताय के जगाते हैं, वैसे ही अविद्वानों को उत्तम शिक्षा दे विद्वान् करके आनन्द देवें ॥७॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वद्विषयमाह ॥

Anvay:

यद्ये ससन्त ऋभवो यथाऽऽपः सिन्धून् धन्वौषधीर्निम्नमातिष्ठँस्तथाऽगोह्यस्याऽऽतिथ्ये द्वादश द्यून् रणन्त्सुक्षेत्राऽकृण्वन्त्सुखान्यनयन्त ते मङ्गलप्रदाः सन्ति ॥७॥

Word-Meaning: - (द्वादश) (द्यून्) दिनानि (यत्) ये (अगोह्यस्य) असंवृतस्य (आतिथ्ये) अतिथीनां सत्कारम् (रणन्) उपदिशन्तु (ऋभवः) मेधाविनः (ससन्तः) शयाना उत्थाय (सुक्षेत्रा) शोभनानि क्षेत्राणि (अकृण्वन्) कुर्वन्ति (अनयन्त) नयन्ति (सिन्धून्) नदीन् समुद्रान् वा (धन्व) अन्तरिक्षम् (आ) (अतिष्ठन्) तिष्ठन्ति (ओषधीः) (निम्नम्) (आपः) जलानि ॥७॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। विद्वांसो यथा शयानान् प्रबोद्ध्य जागरयन्ति तथैवाऽविद्यान्त्संशिक्ष्य विदुषः कृत्वाऽऽनन्दयन्तु ॥७॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. विद्वान लोक जसे निद्रिस्तांना जागृत करतात, तसेच अविद्वानांना उत्तम शिक्षण देऊन विद्वान करून आनंद द्यावा. ॥ ७ ॥