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न त्वा॑ वरन्ते अ॒न्यथा॒ यद्दित्स॑सि स्तु॒तो म॒घम्। स्तो॒तृभ्य॑ इन्द्र गिर्वणः ॥८॥

English Transliteration

na tvā varante anyathā yad ditsasi stuto magham | stotṛbhya indra girvaṇaḥ ||

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Pad Path

न। त्वा॒। व॒र॒न्ते॒। अ॒न्यथा॑। यत्। दित्स॑सि। स्तु॒तः। म॒घम्। स्तो॒तृऽभ्यः॑। इ॒न्द्र॒। गि॒र्व॒णः॒ ॥८॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:32» Mantra:8 | Ashtak:3» Adhyay:6» Varga:28» Mantra:3 | Mandal:4» Anuvak:3» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब अध्यापक और उपदेशक के गुणों को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (गिर्वणः) वाणियों से सत्कार को प्राप्त (इन्द्र) राजन् ! (यत्) जो (स्तुतः) प्रशंसा किये गये आप (स्तोतृभ्यः) विद्वानों के लिये (मघम्) धन को (दित्ससि) देने की इच्छा करते हो उन (त्वा) आपको (अन्यथा) अन्य प्रकार से मनुष्य (न) नहीं (वरन्ते) स्वीकार करते हैं ॥८॥
Connotation: - जो इस संसार में देनेवाला होता है, वही सब का प्रिय होता और कोई भी उसका विरोधी नहीं होता है ॥८॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथाध्यापकोपदेशकगुणानाह ॥

Anvay:

हे गिर्वण इन्द्र ! यद्यः स्तुतः सँस्त्वं स्तोतृभ्यो मघं दित्ससि तं त्वाऽन्यथा मनुष्या न वरन्ते ॥८॥

Word-Meaning: - (न) (त्वा) त्वाम् (वरन्ते) स्वीकुर्वन्ति (अन्यथा) (यत्) यः (दित्ससि) दातुमिच्छसि (स्तुतः) प्रशंसितः (मघम्) धनम् (स्तोतृभ्यः) विद्वद्भ्यः (इन्द्र) राजन् (गिर्वणः) गीर्भिस्सत्कृत ॥८॥
Connotation: - योऽत्र दाता भवति स एव सर्वेषां प्रियो जायते नैव तस्य कोऽपि विरोधी भवति ॥८॥
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MATA SAVITA JOSHI

N/A

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Connotation: - जो या जगात देणारा असतो तोच सर्वांचा प्रिय होतो, कुणीही त्याचा विरोध करीत नाही. ॥ ८ ॥