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यत्रो॒त बा॑धि॒तेभ्य॑श्च॒क्रं कुत्सा॑य॒ युध्य॑ते। मु॒षा॒य इ॑न्द्र॒ सूर्य॑म् ॥४॥

English Transliteration

yatrota bādhitebhyaś cakraṁ kutsāya yudhyate | muṣāya indra sūryam ||

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Pad Path

यत्र॑। उ॒त। बा॒धि॒तेभ्यः॑। च॒क्रम्। कुत्सा॑य। युध्य॑ते। मु॒षा॒यः। इ॒न्द्र॒। सूर्य॑म् ॥४॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:30» Mantra:4 | Ashtak:3» Adhyay:6» Varga:19» Mantra:4 | Mandal:4» Anuvak:3» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) सूर्य्य के सदृश वर्त्तमान न्यायकारिन् ! (यत्र) जिस राज्य में (मुषायः) चोरी करनेवाले के सदृश आचरण करनेवाले (बाधितेभ्यः) पीड़ायुक्त जनों से (कुत्साय) शस्त्र और अस्त्र से युक्तजन और (युध्यते) युद्ध करते हुए जन के लिये (सूर्यम्) सूर्य के सदृश वर्त्तमान न्यायरूपी (चक्रम्) चक्र को वर्त्ताता है, वहाँ (उत) भी सुख नहीं बढ़ता है ॥४॥
Connotation: - जो राजा प्रजा की पीड़ा को नहीं निवारण करे और सूर्य के सदृश श्रेष्ठ गुणों से प्रकाशमान न हो और प्रजाओं से कर ग्रहण करे, वह राजा नहीं होवे ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे इन्द्र ! यत्र मुषायो बाधितेभ्यः कुत्साय युध्यते जनाय सूर्य्यमिव चक्रं वर्त्तयति तत्रोतापि सुखं न वर्द्धते ॥४॥

Word-Meaning: - (यत्र) यस्मिन् राज्ये (उत) अपि (बाधितेभ्यः) पीडितेभ्यः (चक्रम्) चक्रवद्वर्त्तमानं राज्यम् (कुत्साय) शस्त्रास्त्रयुक्ताय (युध्यते) युद्धङ्कुर्वते (मुषायः) यो मुष इवाऽऽचरति (इन्द्र) (सूर्य्यम्) सूर्य्यमिव वर्त्तमानं न्यायम् ॥४॥
Connotation: - यो राजा प्रजापीडां न निवारयेत् सूर्यवद् सद्गुणैः प्रकाशमानो न स्यात् प्रजाभ्यः करञ्च गृह्णीयात् स च न स्यात् ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जो राजा प्रजेच्या कष्टाचे निवारण करीत नाही व सूर्याप्रमाणे सद्गुणांनी प्रकाशित होत नाही व प्रजेकडून कर घेतो त्याने राजा होता कामा नये. ॥ ४ ॥