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त्वं चि॑न्नः॒ शम्या॑ अग्ने अ॒स्या ऋ॒तस्य॑ बोध्यृतचित्स्वा॒धीः। क॒दा त॑ उ॒क्था स॑ध॒माद्या॑नि क॒दा भ॑वन्ति स॒ख्या गृ॒हे ते॑ ॥४॥

English Transliteration

tvaṁ cin naḥ śamyā agne asyā ṛtasya bodhy ṛtacit svādhīḥ | kadā ta ukthā sadhamādyāni kadā bhavanti sakhyā gṛhe te ||

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Pad Path

त्वम्। चि॒त्। नः॒। शम्यै॑। अ॒ग्ने॒। अ॒स्याः। ऋ॒तस्य॑। बो॒धि॒। ऋ॒त॒ऽचि॒त्। सु॒ऽआ॒धीः। क॒दा। ते॒। उ॒क्था। स॒ध॒ऽमाद्या॑नि। क॒दा। भ॒व॒न्ति॒। स॒ख्या। गृ॒हे। ते॒॥४॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:3» Mantra:4 | Ashtak:3» Adhyay:4» Varga:20» Mantra:4 | Mandal:4» Anuvak:1» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (अग्ने) अग्नि के सदृश वर्त्तमान राजन् (त्वम्) आप (नः) हम लोगों की (अस्याः) इस प्रजा के (ऋतस्य) सत्य के (शम्यै) कर्म्म के लिये (स्वाधीः) उत्तम प्रकार सब प्रकार विचार करने और (ऋतचित्) सत्य का संग्रह करनेवाला होते हुए (कदा) कब (बोधि) जानो और (चित्) भी (ते) आपके (गृहे) गृह में (सधमाद्यानि) मेल के स्थानों में श्रेष्ठ और (उक्था) उचित भी (ते) तुम्हारे (सख्या) मित्रों के कर्म्म वा अभिप्राय (कदा) कब (भवन्ति) होते हैं ॥४॥
Connotation: - हे राजन् ! आप जब प्रजा के सत्य न्याय को करेंगे, तब ही आपकी आज्ञा के अनुकूल वर्त्ताव करके प्रजा एकसम्मति से होंगीं ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे अग्ने राजंस्त्वं नोऽअस्या ऋतस्य शम्यै स्वाधीर्ऋतचित्सन्कदा बोधि चिदपि ते गृहे सधमाद्यान्युक्था चिदपि ते सख्या कदा भवन्ति ॥४॥

Word-Meaning: - (त्वम्) (चित्) अपि (नः) अस्माकम् (शम्यै) कर्मणे (अग्ने) पावकवद्वर्त्तमान (अस्याः) प्रजायाः (ऋतस्य) सत्यस्य (बोधि) बुध्यस्व (ऋतचित्) य ऋतं सत्यं चिनोति सः (स्वाधीः) यः सुष्ठु समन्ताच्चिन्तयति (कदा) (ते) तव (उक्था) उचितानि (सधमाद्यानि) सहस्थानेषु साधूनि (कदा) (भवन्ति) (सख्या) सखीनां कर्माणि भावा वा (गृहे) (ते) ॥४॥
Connotation: - हे राजंस्त्वं यदा प्रजायाः सत्यं न्यायं करिष्यसि तदैव तवाऽऽज्ञायां वर्त्तित्वा प्रजा एकमत्या भविष्यन्ति ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे राजा ! तू जेव्हा प्रजेचा सत्य न्याय करशील तेव्हाच तुझी प्रजा तुझ्या अनुकूल वर्तन करून एका विचाराने वागेल. ॥ ४ ॥