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विश्व॑स्मात्सीमध॒माँ इ॑न्द्र॒ दस्यू॒न्विशो॒ दासी॑रकृणोरप्रश॒स्ताः। अबा॑धेथा॒ममृ॑णतं॒ नि शत्रू॒नवि॑न्देथा॒मप॑चितिं॒ वध॑त्रैः ॥४॥

English Transliteration

viśvasmāt sīm adhamām̐ indra dasyūn viśo dāsīr akṛṇor apraśastāḥ | abādhethām amṛṇataṁ ni śatrūn avindethām apacitiṁ vadhatraiḥ ||

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Pad Path

विश्व॑स्मात्। सी॒म्। अ॒ध॒मान्। इ॒न्द्र॒। दस्यू॑न्। विशः॑। दासीः॑। अ॒कृ॒णोः॒। अ॒प्र॒ऽश॒स्ताः। अबा॑धेथाम्। अमृ॑णतम्। नि। शत्रू॑न्। अवि॑न्देथाम्। अप॑ऽचितिम्। वध॑त्रैः ॥४॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:28» Mantra:4 | Ashtak:3» Adhyay:6» Varga:17» Mantra:4 | Mandal:4» Anuvak:3» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) दुष्टों के नाश करनेवाले आप (सीम्) सूर्य्य के सदृश (दासीः) देनेवाली (विशः) प्रजाओं को (अप्रशस्ताः) श्रेष्ठ सुख से रहित करते हुए (अधमान्) पाप के आचरण करनेवाले (दस्यून्) दुष्टों को (विश्वस्मात्) सब से पीड़ायुक्त (अकृणोः) करें। हे राजा और प्रजाजनो मिलकर आप दोनों (वधत्रैः) वधों से (शत्रून्) शत्रुओं को (अबाधेथाम्) बाधा देओ और प्रजा को (अमृणतम्) सुख देओ (अपचितिम्) सत्कार को (नि) अत्यन्त (अविन्देथाम्) प्राप्त होओ ॥४॥
Connotation: - हे राजा आदि राजजनो ! जो साहस कर्म्म करने और जो दुष्ट उपदेश से प्रजा को दोषयुक्त करनेवाले नीच जन होवें, उनको निरन्तर बाधा देओ और श्रेष्ठों का सत्कार करो। ऐसा करने पर आप लोगों का बड़ा सत्कार होगा, यह जानना चाहिये ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे इन्द्र ! त्वं सीमिव दासीर्विशोऽप्रशस्ताः कुर्वतोऽधमान् दस्यून् विश्वस्मात् पीडितानकृणोः। हे राजप्रजाजनौ ! मिलित्वा युवां वधत्रैः शत्रूनबाधेथां प्रजा अमृणतमपचितिं न्यविन्देथाम् ॥४॥

Word-Meaning: - (विश्वस्मात्) सर्वस्मात् (सीम्) आदित्य इव (अधमान्) पापाचारान् (इन्द्र) दुष्टविदारक (दस्यून्) (विशः) प्रजाः (दासीः) दानशीलाः (अकृणोः) कुर्य्याः (अप्रशस्ताः) प्रशस्तसुखरहिताः (अबाधेथाम्) बाधेथाम् (अमृणतम्) सुखयतम् (नि) नितराम् (शत्रून्) (अविन्देथाम्) प्राप्नुतम् (अपचितिम्) सत्कारम् (वधत्रैः) वधैः ॥४॥
Connotation: - हे राजादयो राजजना ! ये साहसिका ये च कूपदेशेन प्रजादूषका नीचा जनाः स्युस्तान् सततं बाधन्ताम् श्रेष्ठान्त्सत्कुर्वन्तु एवङ्कृते युष्माकं महान् सत्कारो भविष्यतीति वेद्यम् ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे राजा इत्यादी राजजनांनो । जे दुःसाहस करणारे व वाईट उपदेश करून प्रजेला दोषयुक्त करणारे क्षुद्र लोक असतात, त्यांच्या कार्यात सतत बाधा उत्पन्न करा व श्रेष्ठांचा सत्कार करा. असे करण्याने तुमचा मोठा सत्कार होईल, हे जाणले पाहिजे. ॥ ४ ॥