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त्वा यु॒जा नि खि॑द॒त्सूर्य॒स्येन्द्र॑श्च॒क्रं सह॑सा स॒द्य इ॑न्दो। अधि॒ ष्णुना॑ बृह॒ता वर्त॑मानं म॒हो द्रु॒हो अप॑ वि॒श्वायु॑ धायि ॥२॥

English Transliteration

tvā yujā ni khidat sūryasyendraś cakraṁ sahasā sadya indo | adhi ṣṇunā bṛhatā vartamānam maho druho apa viśvāyu dhāyi ||

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Pad Path

त्वा। यु॒जा। नि। खि॒द॒त्। सूर्य॑स्य। इन्द्रः॑। च॒क्रम्। सह॑सा। स॒द्यः। इ॒न्दो॒ इति॑। अधि॑। स्नुना॑। बृ॒ह॒ता। वर्त॑मानम्। म॒हः। द्रु॒हः। अप॑। वि॒श्वऽआ॑यु। धा॒यि॒ ॥२॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:28» Mantra:2 | Ashtak:3» Adhyay:6» Varga:17» Mantra:2 | Mandal:4» Anuvak:3» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (इन्दो) ऐश्वर्य्यवान् ! (त्वा) आपको (युजा) युक्तजन से (द्रुहः) द्वेष करनेवाले का सम्बन्ध (अप, धायि) नहीं धारण किया जाता और (महः) बड़ी (वर्त्तमानम्) वर्त्तमान (विश्वायु) सम्पूर्ण अवस्था (अधि) अधिक धारण की जाती है (बृहता) बड़े (स्नुना) व्याप्त (सहसा) बल से (सद्यः) शीघ्र (सूर्य्यस्य) सूर्य्य की (इन्द्रः) बिजुली के सदृश (चक्रम्) चक्र की जो (नि, खिदत्) दीनता को प्राप्त होता है, वह अपेक्षित सुख को प्राप्त होवे ॥२॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो विद्वान् राजा से पालित विद्या धर्म्म और ब्रह्मचर्य्य आदि से युक्त अतिकाल पर्य्यन्त जीवनेवाले होवें, वे शत्रुओं के जीतनेवाले होते हैं ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे इन्दो ! त्वा युजा द्रुहोऽप धायि महो वर्त्तमानं विश्वायु अधिधायि बृहता स्नुना सहसा सद्यः सूर्य्यस्येन्द्र इव चक्रं यो नि खिदत् स इष्टं सुखमाप्नुयात् ॥२॥

Word-Meaning: - (त्वा) त्वाम् (युजा) युक्तेन (नि) (खिदत्) दैन्यम्प्राप्नोति (सूर्य्यस्य) (इन्द्रः) विद्युत् (चक्रम्) (सहसा) बलेन (सद्यः) शीघ्रम् (इन्दो) ऐश्वर्य्यवन् (अधि) उपरि (स्नुना) व्याप्तेन (बृहता) महता (वर्त्तमानम्) (महः) महत् (द्रुहः) द्वेष्टुः (अप) (विश्वायु) सर्वमायुः (धायि) ध्रियते ॥२॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये विदुषा राज्ञा पालिता विद्याधर्म्मब्रह्मचर्य्यादियुक्ताश्चिरञ्जीविनः स्युस्ते शत्रूणां विजेतारो भवन्ति ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. विद्वान राजाकडून ज्यांचे पालन होते ते विद्या, धर्म आणि ब्रह्मचर्य इत्यादींनी युक्त असतात व दीर्घजीवी होतात, ते शत्रूंना जिंकणारे असतात. ॥ २ ॥