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त्वा यु॒जा तव॒ तत्सो॑म स॒ख्य इन्द्रो॑ अ॒पो मन॑वे स॒स्रुत॑स्कः। अह॒न्नहि॒मरि॑णात्स॒प्त सिन्धू॒नपा॑वृणो॒दपि॑हितेव॒ खानि॑ ॥१॥

English Transliteration

tvā yujā tava tat soma sakhya indro apo manave sasrutas kaḥ | ahann ahim ariṇāt sapta sindhūn apāvṛṇod apihiteva khāni ||

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Pad Path

त्वा। यु॒जा। तव॑। तत्। सो॒म॒। स॒ख्ये। इन्द्रः॑। अ॒पः। मन॑वे। स॒ऽस्रु॑तः। क॒रिति॑ कः। अह॑न्। अहि॑म्। अरि॑णात्। स॒प्त। सिन्धू॑न्। अप॑। अ॒वृ॒णो॒त्। अपि॑हिताऽइव। खानि॑ ॥१॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:28» Mantra:1 | Ashtak:3» Adhyay:6» Varga:17» Mantra:1 | Mandal:4» Anuvak:3» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब पाँच ऋचावाले अट्ठाईसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में इन्द्रपदवाच्य सूर्य्यदृष्टान्त से राजप्रजागुणों का उपदेश करते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (सोम) ऐश्वर्य्य से युक्त (तव) आपकी (सख्ये) मित्रता के लिये जैसे (इन्द्रः) सूर्य्य के सदृश राजा (मनवे) मनुष्य के लिये (सस्रुतः) चलनेवालों को (कः) करता (अहिम्) मेघ का (अहन्) नाश करता (सप्त) सात (सिन्धून्) नदियों को (अरिणात्) प्रेरित करता और (खानि) इन्द्रियाँ (अपिहितेव) घिरी हुईं सी (अपः) जलों को (अप, अवृणोत्) घेरती हैं, वैसे (तत्) वह (त्वा) आपको (युजा) युक्त पुरुष के साथ कर्म करने योग्य हो सकता है ॥१॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमावाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे सूर्य्य सब के सुख के लिये वर्षा करके सब को आनन्द देता है, वैसे ही विद्वानों की मित्रता सब को आनन्द देनेवाली है, यह जानना चाहिये ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथेन्द्रपदवाच्यसूर्य्यदृष्टान्तेन राजप्रजागुणानाह ॥

Anvay:

हे सोम ! तव सख्ये यथेन्द्रो मनवे सस्रुतः कोऽहिमहन् सप्त सिन्धूनरिणात् खान्यपिहितेवापोऽपावृणोत् तथा तत्त्वा युजा पुरुषेण कर्म्म कर्त्तुं शक्यम् ॥१॥

Word-Meaning: - (त्वा) त्वाम् (युजा) युक्तेन (तव) (तत्) (सोम) ऐश्वर्य्यसम्पन्न (सख्ये) मित्रत्वाय (इन्द्रः) सूर्य्य इव राजा (अपः) जलानि (मनवे) मनुष्याय (सस्रुतः) गमनशीलान् (कः) करोति (अहन्) हन्ति (अहिम्) मेघम् (अरिणात्) प्रेरयति (सप्त) एतत्सङ्ख्याकान् (सिन्धून्) नदीः (अप) (अवृणोत्) आच्छादयति (अपिहितेव) आच्छादितानीव (खानि) इन्द्रियाणि ॥१॥
Connotation: - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यथा सूर्य्यः सर्वेषां सुखाय वृष्टिं कृत्वा सर्वानानन्दयति तथैव विदुषां मित्रता सर्वानन्दप्रदाऽस्तीति वेद्यम् ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात राजा व प्रजा इत्यादींच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची या पूर्वीच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. हे माणसांनो ! जसा सूर्य सर्वांच्या सुखासाठी वृष्टी करून सर्वांना आनंद देतो तसेच विद्वानांची मैत्री सर्वांना आनंददायक असते, हे जाणले पाहिजे. ॥ १ ॥