Go To Mantra

अध॑ श्वे॒तं क॒लशं॒ गोभि॑र॒क्तमा॑पिप्या॒नं म॒घवा॑ शु॒क्रमन्धः॑। अ॒ध्व॒र्युभिः॒ प्रय॑तं॒ मध्वो॒ अग्र॒मिन्द्रो॒ मदा॑य॒ प्रति॑ ध॒त्पिब॑ध्यै॒ शूरो॒ मदा॑य॒ प्रति॑ ध॒त्पिब॑ध्यै ॥५॥

English Transliteration

adha śvetaṁ kalaśaṁ gobhir aktam āpipyānam maghavā śukram andhaḥ | adhvaryubhiḥ prayatam madhvo agram indro madāya prati dhat pibadhyai śūro madāya prati dhat pibadhyai ||

Mantra Audio
Pad Path

अध॑। श्वे॒तम्। क॒लश॑म्। गोभिः॑। अ॒क्तम्। आ॒ऽपि॒प्या॒नम्। म॒घऽवा॑। शु॒क्रम्। अन्धः॑। अ॒ध्व॒र्युऽभिः॑। प्रऽय॑तम्। मध्वः॑। अग्र॑म्। इन्द्रः॑। मदा॑य। प्रति॑। ध॒त्। पिब॑ध्यै। शूरः॑। मदा॑य। प्रति॑। ध॒त्। पिब॑ध्यै ॥५॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:27» Mantra:5 | Ashtak:3» Adhyay:6» Varga:16» Mantra:5 | Mandal:4» Anuvak:3» Mantra:5


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (मघवा) बहुत श्रेष्ठ धनयुक्त (गोभिः) गौओं से (अक्तम्) सम्बद्ध (आपिप्यानम्) बढ़े हुए (श्वेतम्) श्वेत वर्णवाले (कलशम्) घड़े (शुक्रम्) जल और (अन्धः) अन्न को (पिबध्यै) पीने के लिये (मदाय) आनन्द के लिये (प्रति, धत्) धारण करता है (अध) और जो (शूरः) भय से रहित (इन्द्रः) अत्यन्त ऐश्वर्य्यवाला (मदाय) आनन्द के लिये (अध्वर्य्युभिः) अपने नहीं नाश होने की इच्छा करनेवालों के साथ (मध्वः) मधुर आदि गुणों के (अग्रम्) प्रथम (प्रयतम्) प्रयत्न से सिद्ध करने योग्य आनन्द के लिये (पिबध्यै) पीने को (प्रति, धत्) धारण करता है, वह नहीं नष्ट होनेवाले बल को प्राप्त होता है ॥५॥
Connotation: - जो नियमित आहार और विहार करने और नहीं हिंसा करनेवाले शूरवीर होवें, वे सदा विजय को प्राप्त होवें ॥५॥ इस सूक्त में जीव के गुणों के वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥५॥ यह सत्ताईसवाँ सूक्त और सोलहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यो मघवा गोभिरक्तमापिप्यानं श्वेतं कलशं शुक्रमन्धः पिबध्यै मदाय प्रतिधदध यः शूर इन्द्रो मदायाऽध्वर्य्युभिः सह मध्वोऽग्रं प्रयतं पिबध्यै प्रतिधत् सोऽक्षयं बलमाप्नोति ॥५॥

Word-Meaning: - (अध) (श्वेतम्) (कलशम्) कुम्भम् (गोभिः) धेनुभिः (अक्तम्) सम्बद्धम् (आपिप्यानम्) सर्वतो वर्धमानम् (मघवा) बहुपूजितधनः (शुक्रम्) उदकम् । शुक्रमित्युदकनामसु पठितम्। (निघं०१.१२) (अन्धः) अन्नम् (अध्वर्युभिः) आत्मनोऽध्वरमहिंसामिच्छुभिः (प्रयतम्) प्रयत्नसाध्यम् (मध्वः) मधुरादिगुणस्य (अग्रम्) (इन्द्रः) परमैश्वर्य्यवान् (मदाय) आनन्दाय (प्रति) (धत्) प्रतिदधाति (पिबध्यै) पातुम् (शूरः) निर्भयः (मदाय) (प्रति) (धत्) (पिबध्यै) पातुम् ॥५॥
Connotation: - ये युक्ताहारविहारा अहिंस्राः शूरवीराः स्युस्ते सदा विजयमाप्नुयुरिति ॥५॥ अत्र जीवगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥५॥ इति सप्तविंशतितमं सूक्तं षोडशो वर्गश्च समाप्तः ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - जे नियमित आहार-विहार करतात व अहिंसेचे पालन करतात ते शूरवीर असतात व सदैव विजय प्राप्त करतात. ॥ ५ ॥