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न घा॒ स मामप॒ जोषं॑ जभारा॒भीमा॑स॒ त्वक्ष॑सा वी॒र्ये॑ण। ई॒र्मा पुर॑न्धिरजहा॒दरा॑तीरु॒त वाताँ॑ अतर॒च्छूशु॑वानः ॥२॥

English Transliteration

na ghā sa mām apa joṣaṁ jabhārābhīm āsa tvakṣasā vīryeṇa | īrmā puraṁdhir ajahād arātīr uta vātām̐ atarac chūśuvānaḥ ||

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Pad Path

न। घ॒। सः। माम्। अप॑। जोष॑म्। ज॒भा॒र॒। अ॒भि। ई॒म्। आ॒स॒। त्वक्ष॑सा। वी॒र्ये॑ण। ई॒र्मा। पुर॑म्ऽधिः। अ॒ज॒हा॒त्। अरा॑तीः। उ॒त। वाता॑न्। अ॒त॒र॒त्। शूशु॑वानः ॥२॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:27» Mantra:2 | Ashtak:3» Adhyay:6» Varga:16» Mantra:2 | Mandal:4» Anuvak:3» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - जो (शूशुवानः) बढ़ने (पुरन्धिः) बहुत पदार्थों को धारण करने और (ईर्मा) प्रेरणा करनेवाला (त्वक्षसा) तीव्र (वीर्य्येण) बल से (वातान्) वायु के सदृश वेगयुक्त पदार्थों के समान (अरातीः) शत्रुओं का (अजहात्) त्याग करे (उत) और शत्रुओं के बल के (अतरत्) पार होवे (सः, घा) वही (माम्) मेरे (अप, जोषम्) विपरीत सेवन को (न) नहीं (जभार) धारण करे, इससे मैं (ईम्) सब प्रकार सुखयुक्त (अभि, आस) सब ओर से होऊँ ॥२॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य वायु के सदृश बलवान् होकर शत्रुओं को दबाते हैं, वे दुःख को लाँघ और और बुरे कर्म को त्याग के सुखी होते हैं ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

यः शूशुवानः पुरन्धिरीर्मा त्वक्षसा वीर्येण वातानिवाऽरातीरजहादुत शत्रुबलमतरत् स घा मामप जोषं न जभार एतेनाऽहमीं सर्वतस्सुरभ्यास ॥२॥

Word-Meaning: - (न) निषेधे (घा) एव। अत्र ऋचि तुनुघेति दीर्घः। (सः) (माम्) (अप) (जोषम्) विपरीतसेवनम् (जभार) धरेत् (अभि) (ईम्) सर्वतः (आस) भवेयम् (त्वक्षसा) तीव्रेण (वीर्येण) बलेन (ईर्मा) प्रेरकः (पुरन्धिः) बहुधरः (अजहात्) (अरातीः) शत्रून् (उत) (वातान्) वायुवद्वेगयुक्तान् (अतरत्) तरेत् (शूशुवानः) वर्धमानः ॥२॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये मनुष्या वायुवद्बलिष्ठा भूत्वा शत्रून् धर्षन्ति ते दुःखं तीर्त्वा दुष्टकर्म्म त्यक्त्वा सुखिनो भवन्ति ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसे वायूप्रमाणे बलवान बनून शत्रूवर नियंत्रण करतात ती दुःख व दुष्ट कर्माचा त्याग करून सुखी होतात. ॥ २ ॥