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आ॒दाय॑ श्ये॒नो अ॑भर॒त्सोमं॑ स॒हस्रं॑ स॒वाँ अ॒युतं॑ च सा॒कम्। अत्रा॒ पुर॑न्धिरजहा॒दरा॑ती॒र्मदे॒ सोम॑स्य मू॒रा अमू॑रः ॥७॥

English Transliteration

ādāya śyeno abharat somaṁ sahasraṁ savām̐ ayutaṁ ca sākam | atrā puraṁdhir ajahād arātīr made somasya mūrā amūraḥ ||

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Pad Path

आ॒ऽदाय॑। श्ये॒नः। अ॒भ॒र॒त्। सोम॑म्। स॒हस्र॑म्। स॒वान्। अ॒युत॑म्। च॒। सा॒कम्। अत्र॑। पुर॑म्ऽधिः। अ॒ज॒हा॒त्। अरा॑तीः। मदे॑। सोम॑स्य। मू॒राः। अमू॑रः ॥७॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:26» Mantra:7 | Ashtak:3» Adhyay:6» Varga:15» Mantra:7 | Mandal:4» Anuvak:3» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर प्रकारान्तर से पूर्वोक्त विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - जो सेना का स्वामी (श्येनः) वाज नामक पक्षी के सदृश (सहस्रम्) सहस्र संख्यायुक्त (सोमम्) ऐश्वर्य्य वा ओषधि आदि पदार्थ (च) और (अयुतम्) असंख्य (सवान्) उत्पन्न हुए पदार्थों को (आदाय) ग्रहण करके सेना और राज्य को (अभरत्) धारण करे वह (अमूरः) निर्मोह जन (अत्रा) इस में (पुरन्धिः) पुर को धारण करनेवाला (सोमस्य) ऐश्वर्य्य सम्बन्धी (मदे) आनन्द के निमित्त (मूराः) मूढ़ (अरातीः) शत्रुओं का (अजहात्) त्याग करता है, वह इसमें (साकम्) साथ ही विजय को प्राप्त होवे ॥७॥
Connotation: - जो शत्रु के बल से अधिक बल, शत्रु की सामग्री से सैकड़ों गुणी अधिक सामग्री, उत्तम प्रकार शिक्षायुक्त सेना और विद्वानों को अध्यक्ष करके युद्ध करें, वे निश्चय विजय को प्राप्त होवें ॥७॥ इस सूक्त में ईश्वर और राजसेना के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥७॥ यह छब्बीसवाँ सूक्त और पन्द्रहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः प्रकारान्तरेण पूर्वोक्तविषयमाह ॥

Anvay:

यः सेनेशः श्येन इव सहस्रं सोममयुतञ्च सवानादाय सेनाराष्ट्रेऽभरत् स अमूरोऽत्रा पुरन्धिः सोमस्य मदे मूरा अरातीरजहात् सोऽत्र साकं विजयमाप्नुयात् ॥७॥

Word-Meaning: - (आदाय) गृहीत्वा (श्येनः) श्येनपक्षिवत् (अभरत्) धरेत् (सोमम्) ऐश्वर्य्यमोषध्यादिकं वा (सहस्रम्) (सवान्) निष्पन्नान् पदार्थान् (अयुतम्) अपरिमितसङ्ख्याकम् (च) (साकम्) (अत्रा) अत्र ऋचि तुनुघेति दीर्घः। (पुरन्धिः) यः पुरं दधाति (अजहात्) जहाति त्यजति (अरातीः) शत्रून् (मदे) आनन्दे (सोमस्य) ऐश्वर्य्यस्य (मूराः) मूढाः (अमूरः) मोहरहितः ॥७॥
Connotation: - ये शत्रुबलादधिकं बलं शत्रोः सामग्र्याः शतशोऽधिकां सामग्रीं सुक्षितां सेनां विदुषोऽध्यक्षान् कृत्वा युध्येरँस्ते ध्रुवं विजयमाप्नुयुः ॥७॥ अत्रेश्वरराजसेनागुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥७॥ इति षड्विंशं सूक्तं पञ्चदशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे शत्रूच्या बलापेक्षा अधिक बल, शत्रूच्या सामग्रीपेक्षा शेकडोपट सामग्री, उत्तम प्रकारे प्रशिक्षित सेना व विद्वानांना अध्यक्ष करून युद्ध करतात त्यांचा निश्चित विजय होतो. ॥ ७ ॥