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ऋ॒जी॒पी श्ये॒नो दद॑मानो अं॒शुं प॑रा॒वतः॑ शकु॒नो म॒न्द्रं मद॑म्। सोमं॑ भरद्दादृहा॒णो दे॒वावा॑न्दि॒वो अ॒मुष्मा॒दुत्त॑रादा॒दाय॑ ॥६॥

English Transliteration

ṛjīpī śyeno dadamāno aṁśum parāvataḥ śakuno mandram madam | somam bharad dādṛhāṇo devāvān divo amuṣmād uttarād ādāya ||

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Pad Path

ऋ॒जी॒पी। श्ये॒नः। दद॑मानः। अंशु॒म्। प॒रा॒ऽवतः॑। श॒कु॒नः। म॒न्द्रम्। मद॑म्। सोम॑म्। भ॒र॒त्। द॒दृ॒हा॒णः। दे॒वऽवा॑न्। दि॒वः। अ॒मुष्मा॑त्। उत्ऽत॑रात्। आ॒ऽदाय॑ ॥६॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:26» Mantra:6 | Ashtak:3» Adhyay:6» Varga:15» Mantra:6 | Mandal:4» Anuvak:3» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे राजन् ! जैसे (ऋजीपी) सीधी चालवाला (श्येनः) बढ़े हुए वेग से युक्त (शकुनः) पक्षी (परावतः) दूर देश से गिर के अपने अपेक्षित पदार्थ को (भरत्) धारण करता है, वैसे ही आप (अंशुम्) विज्ञान आदि पदार्थ (मदम्) आनन्द करनेवाले (मन्द्रम्) प्रशंसा करने योग्य (सोमम्) ऐश्वर्य्य को (ददमानः) देते हुए (देवावान्) बहुत विद्वानों से युक्त (अमुष्मात्) परोक्ष (उत्तरात्) आनेवाले (दिवः) बिजुली के प्रकाश से विद्या को (आदाय) ग्रहण करके (दादृहाणः) बढ़ते हुए होवें ॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे पक्षी पृथिवी से उड़ के अन्तरिक्ष के मार्ग से जाकर और आकर अपने प्रयोजन को सिद्ध करते हैं, वैसे ही देश-देशान्तर में विमान आदि से जाकर अपने प्रयोजन को सिद्ध करो ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे राजन् ! यथर्जीपी श्येनः शकुनः परावतो देशात् पतित्वा स्वाभीष्टं पदार्थं भरत् तथैव भवानंशुं मदं मन्द्रं सोमं ददमानो देवावानमुष्मादुत्तराद् दिवो विद्यामादाय दादृहाणो भवेत् ॥६॥

Word-Meaning: - (ऋजीपी) सरलगामी (श्येनः) प्रवृद्धवेगः (ददमानः) (अंशुम्) विज्ञानादिकं पदार्थम् (परावतः) दूरदेशात् (शकुनः) पक्षी (मन्द्रम्) प्रशंसनीयम् (मदम्) आनन्दकरम् (सोमम्) ऐश्वर्य्यम् (भरत्) धरति (दादृहाणः) वर्धमानः (देवावान्) बहवो देवा विद्वांसो विद्यन्ते यस्य सः (दिवः) विद्युत्प्रकाशात् (अमुष्मात्) परोक्षात् (उत्तरात्) (आदाय) ॥६॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यथा पक्षिणो भूमेरुत्थायाऽन्तरिक्षमार्गेण गत्वाऽऽगत्य स्वप्रयोजनं साध्नुवन्ति तथैव देशदेशान्तरं विमानादिना गत्वा स्वप्रयोजनं साध्नुवन्तु ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो! जसे पक्षी पृथ्वीवरून उडून अंतरिक्षात फिरतात तसे देशदेशांतरी विमानाने जाणे-येणे करून आपले प्रयोजन सिद्ध करा. ॥ ६ ॥