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भर॒द्यदि॒ विरतो॒ वेवि॑जानः प॒थोरुणा॒ मनो॑जवा असर्जि। तूयं॑ ययौ॒ मधु॑ना सो॒म्येनो॒त श्रवो॑ विविदे श्ये॒नो अत्र॑ ॥५॥

English Transliteration

bharad yadi vir ato vevijānaḥ pathoruṇā manojavā asarji | tūyaṁ yayau madhunā somyenota śravo vivide śyeno atra ||

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Pad Path

भर॑त्। यदि॑। विः। अतः॑। वेवि॑जानः। प॒था। उ॒रुणा॑। मनः॑ऽजवाः। अ॒स॒र्जि॒। तूय॑म्। य॒यौ। मधु॑ना। सो॒म्येन॑। उ॒त। श्रवः॑। वि॒वि॒दे॒। श्ये॒नः। अत्र॑ ॥५॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:26» Mantra:5 | Ashtak:3» Adhyay:6» Varga:15» Mantra:5 | Mandal:4» Anuvak:3» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे राजजनो ! (यदि) जो (अत्र) इस संसार में आप लोगों से (मनोजवाः) मन के सदृश वेगयुक्त सेनाओं को (असर्जि) बनाता है तो (अतः) इस स्थान से जैसे (श्येनः) हिंसा करनेवाला वेगयुक्त (विः) पक्षी (वेविजानः) कम्पता हुआ (उरुणा) बहुत (पथा) मार्ग से (तूयम्) शीघ्र (ययौ) जाता है, वैसे जो राजा (मधुना) मधुर (सोम्येन) सोम अर्थात् ओषधियों में उत्पन्न हुए रस से (श्रवः) अन्न आदि को (उत) और सेना को (भरत्) पुष्ट करे, वह विजय को (विविदे) प्राप्त होता है ॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे राजजनो ! आप लोग जब तक वाजपक्षी के सदृश वेग युक्त सेना को नहीं करते हैं, तब तक विजय से धन का लाभ नहीं हो सकता है ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे राजपुरुषा ! यद्यत्र भवद्भिर्मनोजवाः सेना असर्जि तर्ह्यतो यथा श्येनो विर्वेविजानः सन्नुरुणा पथा तूयं ययौ तथा यो राजा मधुना सोम्येन श्रवोऽन्नमुत सेनां भरत् स विजयं विविदे ॥५॥

Word-Meaning: - (भरत्) पुष्यात् (यदि) (विः) पक्षी (अतः) अस्मात् स्थानात् (वेविजानः) कम्पमानः (पथा) मार्गेण (उरुणा) बहुना (मनोजवाः) मनोवद्वेगाः (असर्जि) सृजति (तूयम्) तूर्णम् (ययौ) याति गच्छति (मधुना) मधुरेण (सोम्येन) सोमेष्वोषधीषु भवेन (उत) अपि (श्रवः) अन्नादिकम् (विविदे) विन्दति (श्येनः) हिंस्रो वेगवान् पक्षी (अत्र) अस्मिन् संसारे ॥५॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे राजजना ! भवन्तो यावच्छ्येनवद्वेगवतीं सेनां न कुर्वन्ति तावद्विजयधनलाभो भवितुमशक्यः ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे राजजनांनो, तुम्ही लोक जोपर्यंत बाजपक्ष्याप्रमाणे वेगयुक्त सेना तयार करीत नाहीत, तोपर्यंत विजय प्राप्त करून धनाचा लाभ घेऊ शकत नाही. ॥ ५ ॥