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न रे॒वता॑ प॒णिना॑ स॒ख्यमिन्द्रोऽसु॑न्वता सुत॒पाः सं गृ॑णीते। आस्य॒ वेदः॑ खि॒दति॒ हन्ति॑ न॒ग्नं वि सुष्व॑ये प॒क्तये॒ केव॑लो भूत् ॥७॥

English Transliteration

na revatā paṇinā sakhyam indro sunvatā sutapāḥ saṁ gṛṇīte | āsya vedaḥ khidati hanti nagnaṁ vi suṣvaye paktaye kevalo bhūt ||

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Pad Path

न। रे॒वता॑। प॒णिना॑। स॒ख्यम्। इन्द्रः॑। असु॑न्वता। सु॒त॒ऽपाः। सम्। गृ॒णी॒ते॒। आ। अ॒स्य॒। वेदः॑। खि॒दति॑। हन्ति॑। न॒ग्नम्। वि। सुस्व॑ये। प॒क्तये॑। केव॑लः। भू॒त् ॥७॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:25» Mantra:7 | Ashtak:3» Adhyay:6» Varga:14» Mantra:2 | Mandal:4» Anuvak:3» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - जो (सुतपाः) उत्तम प्रकार धर्म्मात्मा और राग अर्थात् विषयों में प्रीति और प्राणियों में द्वेष से रहित (इन्द्रः) अत्यन्त ऐश्वर्य्यवाला राजा (रेवता) श्रेष्ठ धनवाले (पणिना) व्यवहारी वैश्य जन आदि और (असुन्वता) नहीं पुरुषार्थ करनेवाले जन के साथ (सख्यम्) मित्रपने को (न) नहीं करता और सब को सत्य न्याय का (सम्, गृणीते) अच्छे प्रकार उपदेश देता है और जो (केवलः) सहायरहित हुआ (सुष्वये) उत्तम प्रकार उत्पन्न करनेवाले (पक्तये) पाककर्त्ता के लिये (भूत्) होता है और जो (नग्नम्) निर्लज्ज का (वि, हन्ति) उत्तम प्रकार नाश करता है (अस्य) इस राजा का (वेदः) द्रव्य कभी नहीं (आ, खिदति) दीनता अर्थात् नाश को प्राप्त होता है ॥७॥
Connotation: - जो राजा धन आदि के लोभ से धनियों के ऊपर प्रसन्न और दरिद्रों के प्रति अप्रसन्न नहीं होता है और जो दुष्टों को उत्तम प्रकार दण्ड देकर श्रेष्ठों की निरन्तर रक्षा करता है, नहीं इस का राज्य कभी खेद को प्राप्त होता है ॥७॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

यः सुतपा इन्द्रो रेवता पणिनाऽसुन्वता सह सख्यं न करोति सर्वेभ्यः सत्यं न्यायं सङ्गृणीते यः केवलः सन् सुष्वये पक्तये भूद्यो नग्नं विहन्त्यस्य वेदः कदाचिन्नाखिदति ॥७॥

Word-Meaning: - (न) (रेवता) प्रशस्तधनवता (पणिना) व्यवहर्त्रा वणिग्जनादिना (सख्यम्) मित्रभावम् (इन्द्रः) परमैश्वर्य्यवान् राजा (असुन्वता) अपुरुषार्थिना (सुतपाः) सुष्ठु धर्म्मात्मा रागद्वेषरहितः (सम्) (गृणीते) उपदिशति (आ) (अस्य) राज्ञः (वेदः) द्रव्यम् (खिदति) दैन्यं प्राप्नोति (हन्ति) (नग्नम्) निर्लज्जम् (वि) (सुष्वये) सुष्ठु निष्पादकाय (पक्तये) पाककर्त्रे (केवलः) असहायः (भूत्) भवति ॥७॥
Connotation: - यो राजा धनादिलोभेन धनिनामुपरि प्रीतो दरिद्रान् प्रत्यप्रसन्नो न भवति, यो दुष्टान्त्सम्यग्दण्डयित्वा श्रेष्ठान् सततं रक्षति नैवाऽस्य राष्ट्रं कदाचित् खेदं प्राप्नोति ॥७॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जो राजा धन इत्यादीच्या लोभाने धनिकांवर प्रसन्न व दरिद्री लोकांवर अप्रसन्न होत नाही व दुष्टांना उत्तम प्रकारे दंड देऊन श्रेष्ठांचे निरंतर रक्षण करतो, त्या राज्यात कधी दुःख उत्पन्न होत नाही. ॥ ७ ॥