Go To Mantra

सु॒प्रा॒व्यः॑ प्राशु॒षाळे॒ष वी॒रः सुष्वेः॑ प॒क्तिं कृ॑णुते॒ केव॒लेन्द्रः॑। नासु॑ष्वेरा॒पिर्न सखा॒ न जा॒मिर्दु॑ष्प्रा॒व्यो॑ऽवह॒न्तेदवा॑चः ॥६॥

English Transliteration

suprāvyaḥ prāśuṣāḻ eṣa vīraḥ suṣveḥ paktiṁ kṛṇute kevalendraḥ | nāsuṣver āpir na sakhā na jāmir duṣprāvyo vahanted avācaḥ ||

Mantra Audio
Pad Path

सु॒प्र॒ऽअ॒व्यः॑। प्रा॒शु॒षाट्। ए॒षः। वी॒रः। सुस्वेः॑। प॒क्तिम्। कृ॒णु॒ते॒। केव॑ला। इन्द्रः॑। न। असु॑स्वेः। आ॒पिः। न। सखा॑। न। जा॒मिः। दुः॒प्र॒ऽअ॒व्यः॑। अ॒व॒ह॒न्ता। इत्। अवा॑चः ॥६॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:25» Mantra:6 | Ashtak:3» Adhyay:6» Varga:14» Mantra:1 | Mandal:4» Anuvak:3» Mantra:6


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब राजा अमात्यादिकों के गुणों को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (सुप्राव्यः) उत्तम प्रकार रक्षा करने योग्य (प्राशुषाट्) वेगयुक्त शत्रुओं को सहनेवाला (एषः) यह (वीरः) बलिष्ठ (इन्द्रः) ऐश्वर्य्ययुक्त जन (सुष्वेः) उत्तम प्रकार उत्पन्न अन्न के (केवला) केवल (पक्तिम्) पाक को (कृणुते) करता है और जो (असुष्वेः) आलस्य भरे हुए अर्थात् नहीं उत्पन्न करनेवाले के सम्बन्ध में (आपिः) सब को प्राप्त होनेवाले के (न) सदृश वा (सखा) मित्र के (न) सदृश (जामिः) बन्धु (दुष्प्राव्यः) दुःख से रक्षा करने योग्य और (अवाचः) दुष्ट वचनवाले के (अवहन्ता) विरुद्ध काम का हनन करनेवाला (इत्) ही विरोध को (न) नहीं करता है, वही सब का सुखदाता होता है ॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जो राजपुरुष उत्तम प्रकार संस्कारयुक्त अन्न का भोग तथा मित्र और बन्धुओं के सदृश वर्त्ताव करके दुष्ट स्वभाववालों का नाश करते, वे दारिद्र्य और पराजय को नहीं प्राप्त होते हैं ॥६॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ राजामात्यादिगुणानाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यः सुप्राव्यः प्राशुषाडेष वीर इन्द्रः सुष्वेः केवला पक्तिं कृणुते योऽसुष्वेरापिर्न सखा न जामिर्दुष्प्राव्योऽवाचोऽवहन्तेदेव विरोधं न कृणुते स एव सर्वस्य सुखदाता जायते ॥६॥

Word-Meaning: - (सुप्राव्यः) सुष्ठु रक्षितुं योग्यः (प्राशुषाट्) यः प्राशून् वेगवतश्शत्रून् सहते (एषः) वर्त्तमानः (वीरः) बलिष्ठः (सुष्वेः) सुष्ठु निष्पन्नस्याऽन्नस्य (पक्तिम्) पाकम् (कृणुते) करोति (केवला) केवलाम् (इन्द्रः) ऐश्वर्य्यवान् (न) (असुष्वेः) अलसस्याऽनिष्पादकस्य (आपिः) यः सर्वानाप्नोति (न) इव (सखा) सुहृत् (न) (जामिः) बन्धुः (दुष्प्राव्यः) दुःखेन प्रावितुं योग्यः (अवहन्ता) विरुद्धस्य हननकर्त्ता (इत्) एव (अवाचः) दुष्टवचनस्य ॥६॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । ये राजपुरुषाः सुसंस्कृतान्नं भुक्त्वा मित्रवद् बन्धुवद्वर्त्तित्वा दुःशीलान् घ्नन्ति न ते दारिद्र्यं पराजयञ्च प्राप्नुवन्ति ॥६॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे पुरुष उत्तम प्रकारे संस्कारयुक्त अन्नाचे भोजन करतात व मित्र आणि बंधूप्रमाणे आचरण करतात, दुष्ट स्वभाव असणाऱ्यांचा नाश करतात ते दरिद्री व पराजित होत नाहीत. ॥ ६ ॥