Go To Mantra

को ना॑नाम॒ वच॑सा सो॒म्याय॑ मना॒युर्वा॑ भवति॒ वस्त॑ उ॒स्राः। क इन्द्र॑स्य॒ युज्यं॒ कः स॑खि॒त्वं को भ्रा॒त्रं व॑ष्टि क॒वये॒ क ऊ॒ती ॥२॥

English Transliteration

ko nānāma vacasā somyāya manāyur vā bhavati vasta usrāḥ | ka indrasya yujyaṁ kaḥ sakhitvaṁ ko bhrātraṁ vaṣṭi kavaye ka ūtī ||

Mantra Audio
Pad Path

कः। न॒ना॒म॒। वच॑सा। सो॒म्याय॑। म॒ना॒युः। वा॒। भ॒व॒ति॒। वस्ते॑। उ॒स्राः। कः। इन्द्र॑स्य। युज्य॑म्। कः। सखि॒ऽत्वम्। कः। भ्रा॒त्रम्। व॒ष्टि॒। क॒वये॑। कः। ऊ॒ती ॥२॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:25» Mantra:2 | Ashtak:3» Adhyay:6» Varga:13» Mantra:2 | Mandal:4» Anuvak:3» Mantra:2


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब राजकर्त्तव्यविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वानो ! (कः) कौन (वचसा) वचन से (सोम्याय) सोमरूप ऐश्वर्य्य की सिद्धि करनेवाले के लिये (नानाम) नम्र होता है (कः, वा) अथवा कौन वचन से सोमरूप ऐश्वर्य्य की सिद्धि करनेवाले के लिये (मनायुः) विज्ञान की कामना करता हुआ (भवति) होता है (कः) कौन (उस्राः) किरणों के सदृश सब को गुणों से (वस्ते) चाहता है (कः) कौन (इन्द्रस्य) ऐश्वर्य्ययुक्त के (युज्यम्) जोड़ने योग्य (सखित्वम्) मित्रपने को (कः) अथवा कौन (कवये) बुद्धिमान् के लिये (ऊती) रक्षण आदि कर्म्म से (भ्रात्रम्) भ्रातृपने की (वष्टि) कामना करता है, इस का उत्तर कहो ॥२॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मन, कर्म्म और वचन से नम्र होता है, जो किरणों के तुल्य प्रकाशस्वरूप व्यवहारयुक्त, जो जगदीश्वर के साथ मित्रता करता तथा सबके साथ भ्रातृपन की रक्षा करता और जो विद्वानों के लिये हित करता है, वही सम्पूर्ण इष्टफल को प्राप्त होता है ॥२॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ राजकर्त्तव्यविषयमाह ॥

Anvay:

हे विद्वांसः ! को वचसा सोम्याय नानाम को वा वचसा सोम्याय मनायुर्भवति क उस्रा इव सर्वान् गुणैर्वस्ते क इन्द्रस्य युज्यं सखित्वं को वा कवय ऊती भ्रात्रं वष्टीत्युत्तरं ब्रूत ॥२॥

Word-Meaning: - (कः) (नानाम) नम्रो भवति। अत्र तुजादीनां दीर्घोऽभ्यासस्येति दीर्घः। (वचसा) वचनेन (सोम्याय) सोमैश्वर्य्यसाधवे (मनायुः) मनो विज्ञानं कामयमानः (वा) (भवति) (वस्ते) कामयते (उस्राः) रश्मय इव। उस्रा इति रश्मिनामसु पठितम्। (निघं०१.५) (कः) (इन्द्रस्य) (युज्यम्) योक्तुमर्हम् (कः) (सखित्वम्) (कः) (भ्रात्रम्) भ्रातृभावम् (वष्टि) कामयते (कवये) प्राज्ञाय (कः) (ऊती) ऊत्या रक्षणादिक्रियया ॥२॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यो मनसा कर्म्मणा वाचा नम्रो जायते यो रश्मिवत् प्रकाशात्मव्यवहारो यो जगदीश्वरेण मित्रत्वमाचरति सर्वैस्सह भ्रातृभावं रक्षति यश्च विद्वद्भ्यो हितं करोति स एव सर्वमिष्टं फलं लभते ॥२॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जो मन कर्म, वचनाने नम्र असतो. किरणांप्रमाणे प्रकाशस्वरूप आत्मव्यवहारयुक्त, जगदीश्वराबरोबर मैत्री करतो व सर्वांबद्दल बंधुप्रेम बाळगतो, विद्वानांचे हित करतो तोच संपूर्ण इष्टफळ प्राप्त करतो. ॥ २ ॥